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________________ धमे० बनगार मोहांशक्षपणोल्वणी कृतबलो निस्सापरायं स्फुरन् । शुक्लध्यानकुठारकृत्तबलवत्कर्मद्रुमूलोऽपरं, ना प्रस्फोटितपक्षरेणुखगवद्यात्युलमरत्वा रजः॥८॥ जो द्रव्यसे पुल्लिंग है और जिसने सबसे पहले क्षुधादिक परीषहोंको सह्य बना लिया है। -जो इन परीपहोंके अथवा उपसर्गोंके द्वारा कभी भी अभिभूत नहीं होता और अप्रतिहत तथा प्रतिक्षण बढता हुआ है मोक्षके लिये उत्साह जिसका एवं क्षायिक सम्यक्त्व और सामायिक छेदोपस्थापन आदिमेंसे किसी भी चारित्रमें तन्मय होजाने वाला-वपकश्रेणीपर आरोहण करनेकेलिये उन्मुख हुआ है ऐसा सातिशय अप्रमत्त सम्यग्दृष्टि जीव ही क्रमसे मोहनीय कर्मके अंशों-चारित्रमोहनीयकी कुछ प्रकृतियोंके क्षीण होजानेसे उत्कट सामर्थ्य को धारण कर-अपूर्व करण आदि गुणस्थानोंको पाकर अकषायता-लोभके अभावको प्रकाशित करते हुए शुक्लध्यानरूपी कुठारके द्वारा ज्ञानावरण दर्शनावरण और अन्तराय इन तीन बलवान् कर्मरूपी वृक्षोंको जडसे उखाडकर- जीवन्मुक्त हो। कर आत्मरूपको आच्छादित करनेकेलिये धूलिके समान वेदनीय आयु नाम गोत्र इन अघाति कौंका निरसन करके ऊर्ध्वगति- लोकके अग्रस्थानको प्राप्त किया करता है। जिस प्रकार यदि किसी पक्षीके पंखोंमें धूलि लगी हो तो वह उड नहीं सकता किंतु उसके दूर होते ही यथेच्छ उडकर ऊपरको जा सकता है । इसी प्रकार जीवन्मुक्तरूपी पक्षी अघातिकमरूपी धूलिको हटाकर ऊर्ध्वगमन किया करता है। भावार्थ-ज्ञानावरणादि बलिष्ठ कर्मोंको निर्मल करनेके लिये छेदन करनेमें कारण शुक्लध्यानरूपी कुठारको जो बताया है वह यद्यपि सामान्य निर्देश है किन्तु उससे एकत्ववितर्क अवीचार नामक दूसरा शुक्ल ध्यान समझना चाहिये । क्योंकि पृथक्त्ववितर्कवीचार नामका शुक्ल ध्यान तो आठवें आदि गुणस्थानों में ही होजाता है। इसी प्रकार अधातिकमाँका निरसन व्युपरतक्रियानिवृत्ति नामके शुक्लध्यानसे हुआ करता है। किंतु यह सब और इसके भी पहले क्षपक श्रेणीका आरोहण तक भी उसी व्यक्तिके हो सकता है जिसने कि परीपहों और उपसगाँको जीतनेका भले प्रकार अभ्यास करलिया है । अत एव मुमुक्षुओंको सबसे पहले इसीका . अध्याय
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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