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________________ हो । कुवेरके भी दुराधि-अनुचित रूपसे प्रवृत्त हुए मानसिक दुःख-के उत्पन्न करनेमें निर्दय किंतु अमोघ शक्तिका रखनेवाला दान | शत्रुस्त्रियोंके श्रृंगारकेलिये विषके समान प्रताप-कोष और दंडसे उत्पन्न हुआ तेज । समस्त जगतको कम कर देनेवाला तीनो लोकोंको व्याप्त कर उनके ऊपर प्रकाशित होनेवाला यश । REATMENT PRENESHINDI अनगार बुद्धयादिक सामग्री भी फल देनेमें पुण्यका ही मुख देखा करती हैं। यही बात बताते हैं - धीस्तीक्ष्णानुगुणः कालो व्यवसायः सुसाहसः। . धैर्यमुद्यतथोत्साहः सर्व पुण्यादृते वृथा ॥ २७ ॥ तीक्ष्ण-कुशाग्रीय-पदार्थको थोडासा स्पर्श करते ही उसके अंततकको विषय करलेनेवाली बुद्धि, कार्यकी सिद्धिमें मदत पहुंचानेवाला समय, कर्मके प्रति साहसपूर्ण उद्यम, बढता हुआ धैर्य-विनोंपर विजय प्राप्त करनेकी शक्ति-और उत्साह-कार्यकारिणी शक्ति । ये सब बुद्ध्यादिक पांचों ही पदार्थ पुण्यके विना व्यर्थ हैं। यदि इष्ट पदार्थोके सिद्ध होनेमें पुण्य कर्म स्वतंत्र है तो वह उस विषय में अपने कर्ताकी क्रियाकी भी अपेक्षा क्यों रखता है । इस प्रश्नका उत्तर उत्प्रेक्षा अलंकारके द्वारा देते हैं । - __मनस्विनामीप्सितवस्तुलाभाद्रम्योभिमानः सुतरामिताव । पुण्यं सुहृत्पौरुषदुर्मदानां क्रिया: करोतीष्टफलाप्तिदृप्ताः ॥२८॥ अमिमानी पुरुषोंको ईप्सित वस्तुओंका लाभ हो जानेपर अत्यंत मनोहर अभिमान हुआ करता है। मालुम पडता है, मानों इसीलिये पुण्य कर्म, पौरुषका खोटा मद करनेवालोंकी, अभिमत पदार्थोके सिद्ध होजानेसे माभिमानिक रससे युक्त क्रियाओंको, सिद्ध करनेमें निष्कपट उपकार करता है। अध्याय
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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