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________________ इस प्रकार उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, और शौच, इन चार धर्मोका जो कि क्रमसे क्रोध मान माया ओर लोमकी निवृत्ति होनेसे उद्भूत होते हैं, वर्णन करचुकनेपर अन्तमें इन जारो कषायों से प्रत्येककी अनन्तानुबंधिनी अप्रत्पारव्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण, और संज्वलन, इस तरह चार चार अवस्थाएं होती हैं उनको दृष्टांतद्वारा स्पष्ट करते हुए क्रमसे उनके फलोंको भी दो पद्योंमें दिखाते हैं। दृशदवनिरजोऽबराजिवदश्मस्तम्भास्थिकाष्ठवत्रेकवत् । वंशांग्रिमेषशृङ्गोक्षमूत्रचामरवदनुपूर्वम् ॥ ३२ ॥ कृमिचक्रकायमलरजनिरागवदपि च पृथगवस्थाभिः । कुन्मानदम्भलोभा नारकतिर्यङ्नसुरगतीः कुर्युः ॥ ३५ ॥ क्रोध मान माया और लोभ इनमें से प्रत्येककी सर्वोत्कृष्ट और उसकी अपेक्षा हीन हीनतर तथा हीनतम उदयरूप शक्तियों की अपेक्षासे चार चार अवस्थाएं होती हैं जिनको कि क्रमसे अनन्तानुबन्धी आदि कहते हैं । इन अवस्थाओंके द्वारा ही ये क्रोधादिक क्रमसे नारक, तिर्यक्, मानुष और देवगतिको उत्पन्न किया करते हैं। क्योंकि अनन्तानुबंधी क्रोध मान माया और लोभके द्वारा नारकगतिका और अप्रत्याख्यानावरण क्रोधादिकके द्वारा तिर्यग्गतिका तथा प्रत्याख्यानावरण क्रोधादिकके द्वारा मनुष्य गतिका एवं संज्वलन क्रोध मान माया और लोभके द्वारा देवगतिका बन्ध होता है। क्रोधकी अनन्तानुबंधी आदि जो चार अवस्थाएं बताई हैं वे क्रमसे पाषाणरेखा, पृथ्वीरेखा, धूलिरेखा, और जलरेखाके समान हुवा करती हैं । जिस प्रकार पत्थरमें पड़ी हुई दरार सैकडों उपायोंके करनेपर भी फिर नहीं जुड सकती उसी प्रकार अनन्तानुबंधी क्रोधके द्वारा फटा हुआ मन भी कभी जुड नहीं सकता। जिस प्रकार पृथ्वीमें पडी हुई दरार अनेक उपाय करनेपर कठिनतासे जुड़ सकती है उसी तरह अप्रत्याख्यानावरण क्रोधके द्वारा विदीर्ण मन भी कठिनतासे ही मिलता है । जिस प्रकार धूलिके ऊपर कीगई रेखा सहज उपायके द्वारा ही मिट जाती है अध्याय
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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