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अनगार
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अध्याय
५
दाता देय और पात्र इनकी शुद्धिका सम्बन्ध परस्पर में जोडनेसे नव भेद होजाते हैं । यथा: - दाताकी शुद्धिसे देय और पात्रकी शुद्धि होना तथा देयकी शुद्धिसे दाता और पात्रकी शुद्धिका होना, एवं पात्रकी शुद्धिसे दाता और देवकी शुद्धिका होना । 'जिस दानमें ये नव शुद्धि पाई जाती हैं वह अत्यंत उत्कृष्ट फल देता है, इसमें सन्देह नहीं है ।
पिण्डशुद्धिविधानीय नामा
पश्चम अध्याय
समाप्त ॥
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