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________________ बनगार ५५२ धुको रुधिर नामका अन्तराय होता है । और शोकसे अपना अश्रुपात होजानेको अथवा अपने सम्बन्धीके मरजानेपर जोरसे रोते हुए स्त्री अथवा पुरुषके आक्रन्दनके सुनाई पडनेको भी अश्रुपात नामका अन्तगय कहते हैं । तथा सिद्धभक्तिके अनन्तर अपनी जानुके नीचेके भागका हाथसे स्पर्श होजानेको जान्वधःपरामर्श नामक अन्तराय कहते हैं। जानूपरिव्यतिक्रम, नाम्यधोनिर्गमन, प्रत्याख्यातसेवन, और जन्तुवध इन चार अन्तरायोंका स्वरूप दो श्लोकों में बताते हैं:-- जानुदनतिरश्चीनकाष्ठाद्यपरिलङ्गनम् । जानुव्यतिक्रमः कृत्वा निर्गमो नाभ्यधः शिरः ॥ १७ ॥ नाभ्यधोनिर्गमः प्रत्याख्यातसेवोज्झिताशनम् । स्वस्याग्रेन्येन पञ्चाक्षघातो जन्तुवधो भवेत् ॥ ४८ ॥ घोंट्रतक ऊंचे अथवा उससे अधिक ऊंचे किन्तु तिरछे लगे हुए काष्ट-अर्गल या पाषाणादिको लांघकर जानेमें जानूपरिव्यतिक्रम नामका अन्तराय होता है । यदि अपने शिरको नाभिसे नीचे करके निकलना पडे तो नाम्यधोनिर्गम नामका अन्तराय होता है । देवगुरुकी साक्षीसे छोडा हुआ पदार्थ यदि खानेमें आजाय तोम त्याख्यातसेवा नामका अन्तराय होता है। यदि अपने ही (संयमीके ही) सन्मुख कोई दूसरा-चिल्ली कुत्ता आदि मूसे आदि पञ्चेन्द्रिय जीवका घात करे तो जन्तुवध नामका अन्तराय होता है। काकादिपिण्डहरण, पाणिपिण्डपतन, पाणिजन्तुवध, मांसादिदर्शन, उपसर्ग और पादान्तर पञ्चन्द्रियागम न, इन छह अन्तरायोंका स्वरूप तीन श्लोकोंमें बताते हैं: काकादिपिण्डहरणं काकगृडादिना करात् । पिण्डस्य हरणं ग्रासमात्रपातेश्नतः करात् ॥ ४९ ॥ अध्याय
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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