SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 516
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनगार १.४ मनोवाकायदुष्टत्वं मिथ्यात्वं सप्रमादकम् । पिशुनत्वं तथा ज्ञानमक्षाणां चाप्यनिग्रहः ॥ हिंमा झूट चोरी कुशील परिग्रह क्रोध मान माया लोभ जुगुप्सा भय अरति रति मनोमंगुल वचनमंगुल कायमंगुल मिथ्यात्व प्रमाद विशुनता अज्ञान आरे इन्द्रियों का अनिग्रह । विषयव्यासबसे अथवा संकेश परिणामोंसे आगममें बताये हुए कालकी अपेक्षा अधिक कालतक अवश्यकादिकके करते रहनेको अतिक्रम, और विषयव्यामङ्गादिकी अपेक्षाने ही नियत कालसे कम समयमै उस क्रिया के करनेको व्यतिक्रम, तथा क्रियाओंके करनेमें आलस्य करनेको अतिचार, और व्रतों के पालन करने अथवा खण्डित करदेने को अनाचार कहते हैं। अब्रह्म-शीलविराधनाके दश भेद इस प्रकार हैं: - स्त्रीगोष्टी वृष्यभुक्तिश्च गन्धमाल्यादिवासनम् । शयनासनमाकल्पः षष्ठं गन्धववादितम् ।। अर्थसग्रहदुःशीलमङ्गती राजसेवनम् । रात्रौ सचरण चेति दश शीलविगधनाः ॥ अध्याय ५०४ स्त्रियोंकी संगति, पुष्ट आहारका ग्रहण, सुगंध द्रव्य अथवा पुष्पमाला आदि के द्वारा शरीरका संस्कार करना, कोमल शय्या, उत्तम मृदु आमन, कटक कुण्डल आदि भूपणोंका धारण, गीतादि गाना और वांपरी आदि बाजोंका बजाना, सुवादि धनका संग्रह करना, विट प्रभृति कुशीली पुरुषोंका सहवास, राजाकी सेवा, और रात्रिमें इतस्ततः संचरण करना, इस तरह कुलके दश भेद होते हैं। . आकम्पितादिक आलोचनासम्बन्धी दश दोषोंके नाम इस प्रकार हैं:
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy