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________________ बनगार ४६९ बच्याय उपर्युक्त पांचो व्रतोंके महत्वका समर्थनपूर्वक, जिन हेतुओंसे ये व्रत महान् माने गये हैं उनको दिखा*ते हुए और उनकी रक्षा करने के लिये रात्रिभोजनविरतिरूप छडे अणुव्रतका भी उपदेश देते हुए यह बताते हैं कि उत्तरोत्तर अच्छी तरह किये गये अभ्यासके द्वारा इन व्रतोंके संपूर्ण करदेनेपर या होजानेपर ही साधुओंको निर्वाणरूप फल प्राप्त हो सकता है: पञ्चैतानि महाफलानि महतां मान्यानि विष्वग्विर, त्यात्मानीति महान्ति नक्तमशनोज्झाणुव्रताग्राणि ये । प्राणित्राणमुखप्रवृत्त्युपरमानुक्रान्तिपूर्णी भव, - त्साम्याः शुद्धशो व्रतानि सकलीकुर्वन्ति निर्वान्ति ते ॥ १५० ॥ उक्त अहिंसादिक पांचो व्रतोंका महान् शब्दके साथ जो उल्लेख किया है हला यह कि इनका फल महान् है, दूसरा यह कि ये महापुरुषों को भी मान्य हैं, मस्तविरतिरूप हैं। जैसा कि कहा भी है कि: आचरितानि महद्भिर्यच्च महान्तं प्रसाधयन्त्यर्थम् । स्वयमपि महान्ति यस्मान्महाव्रतानीत्यतस्तानि ॥ उसके तीन कारण हैं । पतीसरा यह कि ये महा-स उत्तम पुरुष इन व्रतोंका पालन करते हैं। गणधर देवादिकों को भी ये अनुष्ठेय तथा सेव्य हैं । और इंद्रादिकों द्वारा भी पूज्य हैं; क्यों कि उनकी दर्शनविशुद्धिकी अतिशयित वृद्धिमें ये कारण हैं। दूसरी बात यह कि ये महान् अर्थ - प्रयोजनको सिद्ध करते हैं । इनके निमित्तसे । अनन्तज्ञानादिक अनन्त चतुष्टय स्वरूप तथा मोक्षरूप सर्वोत्कृष्ट महान् फल प्राप्त हो सकता है। तीसरी बात यह कि ये स्वयं भी महान् हैं । स्थूल ये । क्योंकि इसके विना उनका कोई भी उक्त व्रत सुरक्षित नहीं रह सकता। रात्रिभोजन करनेसे मुनियोंको हिंसा शङ्का और आत्मविपत्ति आदि अनके दोष उपस्थित होते हैं। जैसा कि कहा भी है कि: धर्म ० ४६९.
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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