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________________ बनगार कारण माना है या होता है तो चतुष्पदोंका तो कहना ही क्या है। इन हाथी घोडे आदिकोंका संसर्ग तो सुतरां दुःखका ही कारण होगा। दूषित और अपक्व रसके द्वारा जिसकी औदर्य अनि अभिभूत होगई है ऐसे मनुष्यको जब तिक्त द्रव्य-चिरायता नींव आदि भी आयुर्वर्धक जीवनकी स्थिरताकै कारण अथवा स्वास्थ्यकर नहीं हो सकते तो घीका तो फिर काना ही क्या है। क्योंकि तिक्त द्रव्य खभावसे ही आमला पा. चक है। जब उसीसे किसी आमपित व्यक्तिको स्वास्थ्य लाभ नहीं हो सकता तो घीसे जो कि स्निग्ध शीत होनेके कारण उल्टा आमदोषका वर्धक है पथ्यलाभ हो ही किस तरह सकता है। भावार्थ-द्विपद परिग्रहके दोष पहले बता चुके हैं। जब दो पैरवालोंमें इतने दोष हैं तो चार पैरवालोंमें कितने होंगे सो अच्छी तरह समझमें आसकता है। अतएव द्विपदोंकी अपेक्षा चतुष्पदोंको दूना-बहुतर दुःखकर समझकर मुमुक्षुओंको दूर ही से छोड देना चाहिये। अचेतन परिग्रहकी अपेक्षा चेतन परिग्रह अधिक बाधा देनेवाला है यह बात बताते हैं यौनमौखादिसंबन्धद्वारेणाविश्य मानसम् । यया परिग्रहश्चित्स्वान् मन्नाति न तथेतरः ॥ १२४ ॥ योनिकी अपेक्षा अथवा मुखादिककी अपेक्षासे होनेवाले संबन्धके द्वारा जिस प्रकार चेतन परिग्रह मनुष्यके. मनमें प्रवेश कर-उसके हृदयको अच्छी तरह आक्रांत कर पीडित किया करता है वैसा अचेतन परिग्रह नहीं करता। INS बध्याय ४३८ भावार्थ-सहोदर बहिन भाई आदिका जो सम्बन्ध है वह योनिकी अपेक्षासे है और शिष्य तथा साध्यायी आदिका जो सम्बन्ध है वह मुखकी अपेक्षासे है। इसी प्रकार जन्यजनक पोष्यपोषक भोज्यभोक्तृत्व
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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