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________________ अनगार ४१९ अध्याय ४ युक्तिसे अपनी आत्मामें आरोपण कर एकताका प्रत्यय करलेता है । क्योंकि ब्राह्मण लोग वैदिक मन्त्रोंके द्वारा विवाहसमयमें स्त्री और पुरुषके एकत्वका समर्थन किया करते हैं। इस योजनाके अनुसार ही मिथ्यादृष्टि लोग अपने में ही खीका संकल्प करके उसमें इतने अत्यंत आसक्त होजाते हैं कि उसके उच्छ्रासके साथ ही उच्चा लेने और उसके दुःखमें दुःख और सुख में सुखका ही अनुभव किया करते हैं । स्त्रीका उच्छ्वास बंद हो जानेपर -- उसके मरजानेपर आप भी मर जाते और उसके ऊपर विपत्तियां संक्लेश उपस्थित होनेपर अपनेको विपन्न या संक्लिष्ट समझने लगते तथा सुख और शांतिसे युक्त देखकर अपनेको सुखी मानने लगते हैं । हाय ! इस मिथ्या प्रत्यय के कारण यहांतक होता है कि वह मूढ स्त्रीको ही अपना सर्वस्व समझकर दूसरोंकी तो बा ही क्या, अपने मातापिता प्रभृति अत्यंत निकटवर्ती बंधुओं तथा गुरुजनोमें भी परबुद्धि करके उनको अ पना विपक्षी समझकर और उनके प्रति कृतन होकर – “ इनने मेरा किया क्या है ? कुछ नहीं, मैं तो स्वयं अपने पुण्यबलसे ऐसा होगया हूं " यह समझ उनके किये हुए उपकारोंका भी अपलाप करके उनका तिरस्कार करदेता है । भावार्थ - - बाह्य चेतन परिग्रहोंमें एक स्त्री ही ऐसा परिग्रह है कि जिससे आत्मामें इतना तीव्र राग उत्पन्न होजाता है कि जिसके निमित्तसे उसमें कृतघ्नता जैसा महादोष भी आजाता है । इस प्रकार स्त्रीपरिग्रह में आसक्ति रखनेवाले पुरुषमें माता पिता आदिके तिरस्कारद्वारा उत्पन्न होनेवाले कृतघ्नता दोषको दिखाकर यह बताते हैं कि यह जीव उसके मरणका भी अनुगमन कर दुरन्त दुर्गतियोंके दुःखका भोग किया करता है । यह बात वचनभङ्गीके द्वारा प्रकट करते हैं: - चिराय साधारणजन्मदुःखं पश्यन्परं दुःसहमात्मनाग्रे । पृथग्जनः कर्तुमिवेह योग्यां मृत्यानुगच्छत्यपि जीवितेशाम् ॥ ११० ॥ स्त्री अत्यंत अनुराग रखनेवाला यह बहिरात्मा प्राणी यह देखकर कि अनन्तर जन्ममें मुझको चिरकाल 金魚鬆鬆鬆粉粥 鬆鬆酵粉絲雞 ४१९
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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