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________________ RAREHENERMANRAMESH मुख्यरूप जो सचेतन स्त्रियां हैं उनकी तो बात ही क्या किंतु जिनकी केवल आकृति ही देखनेमें आती है ऐसी चित्र पुस्त काष्ठ आदिकमें स्थापित-आरोपित भी ललनाएं किसी तरहसे-प्रज्ञादोषसे अथवा अन्य किसी प्रकारसे मनुष्योंके हृदयमें शाकिनीकी तरहसे संक्रान्त होकर उससे सैकडों ही विकृत चेष्टाएं करादेती हैं। और अधिक क्या कहें ? भावार्थ-अज्ञानी और रागी मनुष्य स्त्रियोंके चित्रको देखकर ही जब विकृतमन होकर अनेक कुचेष्टाएं करने लगते हैं जिनमें कि केवल उनकी आकृतिका ही आरोपण किया जाता है। तो साक्षात् स्त्रियोंके संसर्गसे तो, न मालुम, क्या क्या अनर्थ नहीं हो सकते । शाकिनीके शरीरमें प्रवेश करजानेपर जो जो चेष्टाएं मनुष्य करता है वे सब मन्त्रमहोदधि आदि ग्रंथों में बताई हुई हैं। तथा स्त्रियोंके संसर्गसे जो चेष्टाएं करता है उनको हम पहले लिख ही चुके हैं। इस प्रकार स्त्रीसंसर्गके दोषोंका व्याख्यान कर अब क्रमप्राप्त उनकी अशुचिताका वर्णन पांच पद्योंमें करना चाहते हैं। उसमें पहले सामान्यसे स्त्रियोंके केशपाश मुख और आकृति-शरीरका जो कि आहार्यरमणीय किंतु झटिति विपर्यासके उत्पन्न करनेवाले हैं, व्याख्यान करते हैं। जिससे कि मुमुक्षुओंको मुक्तिका उद्योग करनेमें सहायता प्राप्त होसके। क्योंकि अशुचिताकी भावना-विचार वैराग्यका कारण है गोगर्मुद्वयजनैकवंशिकमुपस्कारोज्ज्वलं कैशिकं, पादुकृद्गृहगन्धिमास्यमसकृत्ताम्बूलवासोत्कटम् । बच्चाय . / १- यथा - खधो खधो पभणइ लुंचइ सीसं ण याणए किंपि। . गय चेयणो हु विलवइ उड्ढं जोएइ अह ण नोएइ ॥
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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