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________________ अनगार ३८७ जैसे कि अनेक प्रयोगों- आग्नसंस्कारोंके द्वारा भष्म बनाया गया भी पारा सिद्धौषधीके द्वारा फिर पारा होजाता है। निताम्वनियोंके आलिङ्गनसम्बन्धी फलका विचार कराते हैं:- . पश्चाहहिर्वरारोहादो:पाशेन तनीयसा । बध्यतेन्तः पुमान् पूर्व मोहपाशेन भूयसा ॥८॥ यह पुरुष इन नितम्बिनियोंके अत्यंत तुच्छ बाहुपाशमें तो बाहिरसे और पीछेसे बंधता है किंतु भीतरआत्मा या हृदयमें तो उसके पहले ही बडे भारी मोहपाशमें बंध जाता है। भावार्थ --बाहिरसे यद्यपि देखनेमें शरीरसे स्त्रियोंका आलिंगन तुच्छ मालुम पडता है किंतु इसके कारणभूत मोहके निमित्रसे आत्माका कर्मके साथ जो बंध होजाता है वह बडा भारी है, जो कि बहिदृष्टियोंकी दृष्टिमें नहीं आसकता, और जो उसके पहिले ही होजाता है । क्योंकि आलिङ्गनके लिये मूञ्छित परिणामोंके होते ही कर्मबन्ध तो हो ही जाता है। फिर चाहे आलिङ्गन हो या न हो। ___ स्त्रियोंके अवलोकनादिसे होनेवाले दोषोंका उपसंहार करते हैं:-- . दृष्टिविषदृष्टिरिव हक्कृत्यावत्संकथाग्निवत्सङ्गः। स्त्रीणामिति सूत्रं स्मर नामापि ग्रहवदिति च वक्तव्यम् ॥ ८९ ॥ हे साधो ! तुझको स्त्रियोंके विषयमें इन सूत्रोंका सदा स्मरण करना चाहिये--निरंतर अध्ययन और । विचार करना चाहिये । क्योंकि इन सूत्रोंसे अनेक अर्थ सिद्ध हो सकते हैं। नाना अर्थोके प्ररूषक वाक्योंको ही अध्याय
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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