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________________ बनगार ३८२ अध्याय ४ जो मनुष्य इन कामिनियोंके कटाक्षका निरीक्षण करनेमें प्रवृत्त होते हैं वे अनेक भवतक युक्तायुक्त के विवेक से शून्य होजाते हैं, यह बात वक्रोक्तिके द्वारा बताते हैं: नूनं नृणां हृदि जवान्निपतन्नपाङ्गः, स्त्रीणां विषं वमति किंचिदचिन्त्यशक्ति | नो चेत्कथं गलितसद्गुरुवाक्य मन्त्रा जन्मान्तरेष्वपि चकास्ति न चेतनाऽन्तः ॥ ८२ ॥ यह बात निश्चित मालुम होती है कि स्त्रियोंका अपाङ्ग कटाक्ष मनुष्योंके हृदयपर पडते अपूर्व-लोकोतर- और जिसकी शक्ति अचिन्त्य है ऐसे विषको उगलता है । अन्यथा उसके पडते ही आत्मामें चेतनाशक्तिको इतनी गाढ मूर्च्छा क्यों आजाती है जो कि वह सद्गुरुओंके वाक्यरूपी मंत्रके प्रभावको भी भ्रष्ट कर, इसी जन्मकी तो बात क्या वह चेतना जन्मान्तर में भी प्रकाशित - प्रबुद्ध नहीं होती । भावार्थ - ललनाओं के कटाक्षका असर इतना तीव्र है कि उससे मनुष्योंका विवेक जन्मजन्मान्तरके लिये भी नष्ट हो जाता है । और उसके सामने सद्गुरुका उपदेश भी अपना कुछ प्रभाव नहीं दिखा सकता । अत एव कहना चाहिये कि वह ऐसा अलौकिक- विष है कि जिसकी शक्ति अचिन्त्य है- विचारमें नहीं आसकती । क्यों कि यदि लौकिक विष होता तो उसकी शक्ति मालुम पड सकती थी और मन्त्रद्वारा दूर भी हो सकती थी । विषका अपहरण करने की शक्ति रखनेवाले अक्षरसमूहको मंत्र कहते हैं। लौकिक विष कैसा भी हो, मंत्रद्वारा वह दूर हो सकता है । किंतु गुरूपदेश जैसे मंत्र को भी जो इतप्रभ कर परलोकतक साथ जाता और अपना कार्य-चेतनाशक्ति - विवेकका नाश करता है ऐसा तो कोई अचिन्त्यशक्तिका अलौकिक ही विष हो सकता है। 1 संयमका सेवन - साधन करनेवाले साधुओंके भी मनको ये स्त्रियां आलोकन संभाषण आदि किसी भी धमे ३८२
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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