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________________ अनगार ३७७ अध्याय ४ SEEMAM Math aasha aasara अङ्गना शब्दका अर्थ प्रशस्त अङ्गवाली -सुंदरी होता है । अत एव कोई कह सकता है कि यहांपर सुन्द रियोंके ही मुख देखने का निषेध किया है, जो सुन्दरी नहीं हैं उनके मुख देखने आदिका इससे निषेध नहीं होता । किन्तु उसे समझना चाहिये कि यांपर अङ्गना शब्द केवल उपपत्ति केलिये ही आया है । त्याज्यता के उपदेश में सामान्यसे स्त्रीशब्दका ही पाठ है । क्योंकि सदाचार में विप्लव स्त्रीमात्रके संसर्ग से होजाया करता है । अत एव लिये स्त्रीमात्रकी संगति त्याज्य है; ऐसा ही समझना चाहिये। कहा भी है किः - ज्ञानियोंने तपःसिद्धिके दो ही कारण बताये हैं । एक तो स्त्रियोंको न देखना - स्त्रीमात्रकी संगति न करना, और दूसरा शरीर को अच्छी तरहसे क्षीण बनाना अनश आदि करके अथवा आतापनादि योगके द्वारा उसको कृष करना । 1 द्वयमेव तपः सिद्वौ बुधाः कारणमूचिरे । यदनालोकन स्त्रीणां यच संग्लापनं तनोः ॥ रागी जीव पहले कामिनियोंके कटाक्षपातका निरीक्षण करनेकी तरफ उन्मुख होता और उसके बाद फिर भी दुर्भाबों में प्रवृत्त होता है। इसी क्रमसे अंत में जाकर वह तत्वरूप परिणत हो जाता है, इस बातको दिखाते अ. ध. ४८ सुविभ्रमसंभ्रमो भ्रमयति स्वान्तं नृणां धूर्तवत, तस्माद् व्याधिभरादिवेोपरमति व्रीडा ततः शाम्यति । शङ्का वन्हिरिवोदकात्तत उदेत्यस्यां गुगेः स्वात्मवद्, विश्वासः प्रणयस्ततो रतिरलं तस्माचतस्तल्लयः ॥ ७९ ॥ ३७७
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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