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________________ भावार्थ-जिस प्रकार अविद्या-जिसका ज्ञान नहीं हो सकता ऐसी अनिर्धारित विशेष आशाओं दिशाओंसे वहनेवाले वायुमण्डलके द्वारा प्रेरित होकर अग्नि मानो अभी सबका भक्षण करजायगी-सबको भस्मसात करदेगी इस तरह तीव्र रूपसे जब जलने लगती है तब उससे अत्यंत घबडाया हुआ आदमी पा समें यदि नितांत कीडोंका घर हो तो उसमें भी वह शीघ्र ही गिरना चाहता है। उस समय वह कृत्य और अकृत्यको कुछ भी नहीं देखता। इसी तरह प्रकृतमें भी समझना चाहिये। यहांपर स्त्रीको कर्दम--कीचके समान बताया है। क्योंकि जिस तरह कीचमें असंख्यात सूक्ष्म जंतु रहा करते हैं उसी प्रकार स्वीके योनिस्थानमें भी जंतु होते हैं जैसा कि कामशास्त्रमें भी कहा है । यथा:-- रक्तजाः कुमयः सूक्ष्मा मृदुमध्याधिशक्तयः । जन्मवर्त्मसु कण्डूतिं जनयन्ति तथाविधाम् ।। स्त्रियोंके अंगविशेषों में सूक्ष्म जंतु हुआ करते हैं जो कि रक्तसे ही उत्पन्न होते और जन्मस्थानयोनिमें रिसाको कारणभूत कडूति-खुजलीको पैदा किया करते हैं। जिसकी बुद्धि या मन ग्राम्य सुखका अनुभव करनकोलये उत्सुक रहा करता है ऐसा मनुप्य उस सुखके कारण धनका उपार्जन करनेके जितने निमित्त हैं उन सभी कामों में दिनरात परिश्रम करता है और उसका मन समस्त स्त्रियो विषयमें अनियंत्रित ही रहता है-सभी स्त्रियों को प्राप्त करनेकेलिये विकृत रहा करता है-यही बात बताते हैं: आपातमृष्टपरिणामकटौ प्रणुन्नः, किंपाकवन्निधुवने मदनग्रहेण । अध्याय
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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