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________________ अनगार इस प्रकार सर्पके विसके मात ही वेग हैं। किंतु कामदेवके दश वेग हैं जिनका कि आगे वर्णन करेंगे । अत एव यह अपूर्व सर्पके समान है। यह ममस्त बहिरात्म जगत् को एक साथ ही और बुरी तरहसे काट रहा है । बुरेपनका अ-िप्राय यह कि वृद्ध पुरुषों में भी यह अपनी अत्यंत तीव्रता दिखाता और उनको अनुचित कामोंमें प्रवृत्त करादेता है । इस प्रकार बहिरात्म प्राणियोंपर इसका एकच्छत्र राज्य हो रहा है। जैसा कि कहा भी है कि: इच्छि सरासणु कुसुम सह अंगु ण दीसइ जासु । हलितसु मयणमहाभहहु तिहुवणि कवणु ण दासु ॥ स्त्री शरासन-धनुष है और कुसुम-पुष्प वाण हैं । यद्यपि जिस के ये धनुष्य और वाण हैं उस पार्नुक का शरीर नहीं दीखता; फिर भी लोक उस को मदन महाभट कहत हैं। तीनो लोकमें ऐसा कौनसा मनुष्य है जो उसका दास न हो। और भी कहा है कि:अनमः पञ्चमिः पाठपार्वश्व व्यजयतेषुमिः। इत्यसंभाव्यमवेतद्विचित्रा वस्तुशक्तयः । यह बात असंभव ही है कि अनंगने और पांच ही वाणोंसे सो भी फलके वाणोंसे और समस्त जगत् को जीत लिया । अथवा ठीक भी है। क्योंकि वस्तुओं की शक्तियां विचित्र हुआ करती हैं। कामके दश वेगोंको हेतुपूर्वक बताते हैं:४- शरीररहित-कामदेव । अध्याय | ३६२
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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