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________________ बनगार धर्म ३६० ओंके देखने सुनने आदिसे जो उसके प्रति उत्कंठागर्भित मानसिक व्यापार होते हैं उनको संकल्प कहते हैं। नखकी त्वचाके समान कठिनताको प्राप्त होजानेवाले शुक्र और शोणित-पिताके वीर्य और माताके रजका जो चारा तरफ गोल परिवरण विशेष होजाता है उसको अण्डा कहते हैं। कामदेवरूपी सर्पकी उत्पत्ति इस संकल्परूपी अंडेसे ही होती है। इसी तरह राग और द्वेष ये दोनों ही इस कामदेवरूपी सर्पकी दो जिहाएं हैं। चिन्ताएं ही इसका रोष है। जिस प्रकार किसी व्यक्तिको काटनेके विषयमें अथवा साधारणः भी सपमें रोष-कोपविशेष हुआ करता अथवा रहा करता हैं उसी प्रकार कामदेव में चिंताएं रहा करती हैं । अभिलषित अंगनाओंके गुणोंका समर्थन और दोषोंका परिहार करनेकेलिये जो विचार होता है उसीको चिंता कहते हैं । सर्पमें रोषकी तरह कामी पुरुषमें यह चिन्ता प्रतिक्षण जाग्रत रहा करती है ! जिस प्रकार सपके विषय-रहनेके या प्रवेश करनेके स्थान वल्मीकादिके रन्ध्र छिद्र हुआ करते हैं उसी प्रकार कामदेवके विषय रूपादिक हैं । छिद्रको पाकर वल्मीकमें सूकी तरह रूपादिकको पाकर कामदेव अपने अभिलपित विषयमें प्रवेश कर जाया करता है । जिस प्रकार सर्पके तालुस्थान में एक डाढ-एक महान दात हुआ करता है जिससे कि वह जीवों को काटा करता है उसी प्रकार इस कामदेवरूपी सर्पके भी महान दर्प-वीर्योद्रेक रहा करता है जिससे कि जीवोंकी कुकृत्यमें प्रवृत्ति हुआ करती है । रतिमनका प्रीतिपूर्वक अवस्थान ही इस कामदेवरूपी सर्पका मुख है और ही-लजा ही इसकी केंचुली है । जिस प्रकार सर्प केंचुलीको छोडदिया करता है उसी प्रकार कामदेव या कामी पुरुप लज्जाको छोडदिया करता है । प्रतिक्षण बढते हुए शोकप्रभृतिदश वेग ही इसका जहर है । ऐमा यह अपूर्व कामदेवरूपी सर्प कितने दःखकी बात है कि देदीप्यमान विवेकरूपी गरुडकी कोड-दोनों भुजाओंके अन्तराल -मादसे बहिर्भूत इस जगतको सारे संसारको बडी बुरी तरहसे काट रहा है। भावार्थ-विवेकशून्य मनुष्य ही इस कामदेवके वश हुआ करते और उससे दुनिवार दुःखोंका अ. नुभव किया करते हैं । अत एव उन दुखोंका अनुभव न करना पड़े इसलिये मुमुक्षुओंको विवेकपूर्वक उ. स कामका परित्याग ही करदेना चाहिये- उससे बिलकुल दूर ही रहना चाहिये जो कि अपूर्व सर्पके सगान ENTSTS अध्याय ६.
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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