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________________ अनगार जिला मकान का करें जब कोने और उनी निवास किया करने की कला के शरीवर्ष || - च ३२४ जिस प्रकार सर्प वल्मीकमें ही उत्पन्न होते और उसी में निवास किया करते हैं। उसी प्रकार वे दोषरूपी सर्प जिनका कि आगे वर्णन करेंगे और जो अनेक प्रकारसे अपायके ही कारण हैं; असत्यरूपी वल्मीकमें ही उत्पन्न होते और निवास किया करते हैं । अत एव मुमुक्षुओंको इस दोषोंके उत्पत्ति और निवासके स्थान असत्यका मन वचन और कायसे त्याग ही करना चाहिये । असत्य चार प्रकारका है-सत्यनिषेध, असदुद्भावन, विपरीत और निंद्य । चरमशरीरी मनुष्योंको छोड कर बाकी कर्मभूमिमें उत्पन्न हुए मनुष्योंका अकालमें-आयुकर्मकी स्थिति पूर्ण हुए विना-मरण नहीं होता इस तरहके वचनोंको सत्यनिषेध कहते हैं। क्योंकि जीवोंका मरण विषवेदनादिक निमित्तोंसे अकालमें भी होता है। ऐसा लोक और आगम दोनो ही में देखनेमें आता है। यथाः विमवेयणरत्तक्खयसत्थगहणाइस किलेसेहिं । आहारोस्सासाणं णिरोहओ छिज्जए आऊ ।।* विष वेदना रक्तक्षय शस्त्रग्रहण संक्लेश परिणाम और आहार तथा श्वासोच्छासका निरोध इन कारणोंसे आयुकर्म छीज जाता है-कम होजाता है अथवा उदीरणामें आकर पूर्ण हो जाता है। इसी विषयमें दूसरे तो ऐसा कहते हैं कि: मरणं प्राणिनां दृष्टमायुःपुण्योभयक्षयात् । तयोरप्यक्षयाद् दृष्टं विषमाऽपरिहारिणाम् ।। अध्याय *-“विसवेयणरत्तक्खयभयसत्थग्गहणसंकिलेसेहिं । उस्सामाहाराणं णिरोहदो छिजदे आऊ" । ऐसा भी पाठ है। इसमें भयको भी गिना है । ३२४
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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