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________________ धनणार २७० बध्याय ३ MAZZA और उसका पान करके बढते हुए महार उत्साहके धारक सुमना - मैत्री आदि भावनाओंसे प्रसन्नचित्त रहनेवाले भव्य पुरुष अथवा देवगण अमरपदको प्राप्त हों। भावार्थ -- इस तरहसे निर्मथित आगमरूपी क्षीरसमुद्रसे निकाल कर तत्त्वज्ञानरूप अमृतका पान करनेवाले मुमुक्षु जन्ममरण और अपमृत्युसे रहित हो जाते हैं । महापर आगमका अवगाहन कर तवज्ञानके निकालनेको ज्ञानकी साधनाराधना समझना चाहिये । क्योंकि समग्र द्रव्यागमके अवगाहनसे उत्पन्न हुए भावागमका पूर्ण होना ही ज्ञानका उद्धार है, और ज्ञान-तत्त्वज्ञानपरिणतिके अनन्तर अमरपदका प्राप्त होना ही निस्तरण है । संयमका धारण करना अत्यंत कठिन है। फिर भी उसका पालन मनके निग्रहसे उत्पन्न हुए स्वाध्यायेोपयोगके द्वारा अच्छी तरहसे हो सकता है। इस बातको मनकी चंचलताका निरूपण करते हुए तीन श्लोकों में बताते हैं: लातुं वीलन मत्स्यवद्गमयितुं मार्गे विदुष्टाश्वव — निम्ना मगापगौघ इव यन्नो वाञ्छिताच्छक्यते । दूरं यात्यनिवारणं यदणुवद् द्राग्वायुवच्चाभितो, नश्यत्याशु यदब्दवद्बहुविधैर्भृत्त्वा विकल्पैर्जगत् ॥ २० ॥ नो मूकवदति नान्धवदीक्षते य, - द्रागारं बधिरवन्न शृणोति तत्त्वम् । २७०
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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