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________________ बनगार श्रुतं स्पर्शमतेर्जातं ज्ञानं लब्ध्यक्षराभिधम्॥ सूक्ष्म अपर्याप्त निगोद जीवके उत्पन्न होने के प्रथम क्षणमें स्पर्शजन्य मतिज्ञानके द्वारा जो श्रुतज्ञान होता है उसको लब्ध्यक्षर कहते हैं। - इसका परिमाण अक्षरश्रुतके अनन्तवें भागमात्र है। अत एव यह सब ज्ञानोंसे जघन्य किंतु निरावरण है। इतना ज्ञान नित्य ही प्रकाशमान रहता है। इससे कम ज्ञान कभी भी और किसी भी जीवके नहीं हो सकता.। यदि इससे भी कम होने लगे तो ज्ञानका ही अभाव होजाय; क्योंकि यह ज्ञानकी सबसे छोटी पर्याय है। एवं, ज्ञानका अभाव होनेसे आत्माका भी अभाव होजायगा क्योंकि ज्ञानरूप उपयोग ही आत्माका लक्षण है। अत एव पर्यायज्ञान नित्य प्रकाशमान है। जैसा कि (गोमटसारमें ) कहा भी है: 2RATHARASTRAXARMORERSExansar SATSANSARVAJMEANISATISHWAKARMANANDHARMA BSERahimirsia-sar सुहमणिगोदअपज्जत्तयस्स जादस्स पढमसमयम्हि । हवदि हु सव्वजहण्णं णिच्चुग्घाडं णिरावरणं । सूक्ष्म निगोदिया अपर्याप्तकके उत्पन्न होनेके प्रथम समयमें जो सर्वजघन्य ज्ञान होता है वह नित्योद्धाटी और निरावरण है । यह ज्ञान सूक्ष्म निगोदजीवके सर्वजघन्य क्षयोपशमकी अपेक्षासे निरावरण है; न कि संर्वथा । वस्तुतः ऊपरके क्षायोपशमिक ज्ञानोंकी अपेक्षा और केवलज्ञानकी अपेक्षा सावरण ही है तथा क्षायोपशमिक भी है। क्योंकि संसारी जीवोंके क्षायिक ज्ञान हो ही नहीं सकता। ध्याय WALALESENSE पर्यायज्ञानके ऊपर और अक्षरश्रुत ज्ञानके पहले अनन्तभागाद्ध असंख्यातभागवृद्धि संख्यातभागवृद्धि संख्यातगुणवृद्धि असंख्यातगुणवृद्धि एवं अनंतगुणवृद्धिके द्वारा जो असंख्येयलोकपरिमाण ज्ञान बढता जाता है उसको प
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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