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________________ अथ तृतीयोऽध्यायः। बनगार २४५ "बीजके विना वृक्षकी तरह सम्यक्त्वके विना विद्या और वृत्त--सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्रकी भी संभूति-उत्पति स्थिति और वृद्धि तथा फलप्राप्ति नहीं हो सकती। " अत एव पहले सम्यग्दर्शनाराधन का वर्णन करके अब सम्यग्ज्ञानाराधनाका प्रारम्भ करते हैं। उसमें भी सबसे पहले मुमुक्षुओंको श्रुतका आराधन करनेकोलिये प्रणित करते हैं । क्योंक परम-सर्वोत्कृष्ट केवलज्ञानकी प्राप्तिका उपाय श्रुत ही है: ... सद्दर्शनब्राह्ममुहूर्तदृप्यन्मनःप्रसादास्तमसा लवित्रम् । भक्तुं परं ब्रह्म भजन्तु शब्दब्रह्माञ्जसं नित्यमथात्मनीना: ॥१॥ सम्यग्दर्शनका आराधन करनेके बाद उन भव्योंको जो कि आत्माका मोक्षरूप हित चाहते हैं और जिनका मनःप्रसाद-मनोगत नैर्मल्य सम्यग्दर्शनरूपी ब्राह्म मुहूर्तके द्वारा उत्कटता-उद्बोधको प्राप्त हो रहा है। घातिकम-मोहनीय ज्ञानावरण दर्शनावरण और अन्तरायके द्वारा उत्पन्न हुए अज्ञानरूप अंधकारका छेद न करनेवाले शुद्ध चिन्मय निज आत्मस्वरूपका आराधन करनेकेलिये पारमार्थिक-निजात्माकी तरफ उन्मुख हुई संवित्तिरूप शब्दब्रह्म-श्रुतज्ञानका निरन्तर आराधन करना चाहिये । भावार्थ-पंद्रह मुहूतकी रात्रि हुआ करती है। उसमें दो घडीके चौदहवें मुहूर्तको ब्राह्ममुहूर्त कहते हैं। यह इतना अच्छा समय है कि इसमें चित्तकी कलुषता बिलकुल दूर होजाती है। अत एव इस समयमें बुद्धि - अध्याय २४५ १-"विद्यावृत्तस्य संभूतिस्थितिवृद्धिफलोदयाः। न सन्त्यसति सम्यक्त्वे बीजाभावे तरोरिव ॥" (भगवान् समन्तभद्र.) -
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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