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________________ अनगार २२७ हिंसा और अहिंसा दोनोंका माहात्म्य बताते हैं : - हीनोपि निष्ठया निष्ठागरिष्ठः स्यादहिंसया । हिंसया श्रेष्ठनिष्ठोपि श्वपचादपि हीयते ॥ ११ ॥ धनबल शरीरबल अथवा अन्य किसी शक्तिसे हीन-रिक्त भी पुरुष इस अहिंसाके कारण द्रव्यहिंसा और भावहिंसाकी निवृत्तिके द्वारा व्रतादिकका अनुष्ठान कर अपने विषयमें-व्रतानुष्ठानादिकमें अत्यंत महान्-उत्कृष्ट -या पूज्य हो जाता है। किंतु इसके विरुद्ध हिंसाप्रवृत्तिसे श्रेष्ठ आचरण-व्रतानुष्ठानादि करनेवाला भी पुरुष अत्यंत हीन-चाण्डालसे भी निकृष्ट हो जाता है। मिथ्या चारित्रका आचरण करनेवालोंके साथ संगति करनेका निषेध करते हैं: केचित्सुखं दुःखनिवृत्तिमन्ये प्रकर्तुकामाः करणीगुरूणाम् । कृत्त्वा प्रमाणं गिरमाचरन्तो हिंसामहिंसारसिकैरपास्याः ॥ १०२ ॥ कोई तो इसलिये कि हमको और हमारे इष्ट मित्र बन्धुओंको सुख प्राप्त हो-हमारे और उनके यहां खुब आनंद रहे और कोई इसलिये कि हमारे तथा हमारे मित्रों के ऊपर जो दाख क्लेश या विपत्ति आई हुई हैं वे सब दूर हो,जाय । मतलब यह कि सुखकी प्राप्ति और दुःखकी निवृत्ति करने की इच्छासे बहुतसे लोग करणी-उपाधि-परिग्रहसे युक्त गुरुओं-मिथ्या आचार्योंके वचनोंको प्रमाण मानकर-यह विश्वास करके कि इनके उपदेशानुसार आचरण करनेसे हमें अवश्य ही सुखकी प्राप्ति होगी या हमारे दुःख दूर हो जायगे; हिंसामय आचरण करते हैं। ऐसे लोगोंकी संगति, जो अहिंसामय आचरणके रसमें आसक्ति रखलेवाले हैं, उन्हें छोडदेनी ही चाहिये। Sali24TA0-35 अध्याय २२७
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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