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________________ धमे. SANTPURAJESTISASTUESTISATISKYMENT PEA सम्यक्त्वादिषु सिद्धिसाधनतया त्रिष्वेव सिद्धेषु ये, रोचन्ते न तथैकशस्त्रय इमे ये च द्विशस्ते त्रयः । यश्च त्रीण्यपि सोप्यमी शुभदृशा सप्तापि मिथ्यादृश, स्त्याज्याः खण्डयितुं प्रचण्डमतयः सदृष्टिसम्राटपदम् ॥ ९५ ॥ . सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान सम्यक्चारित्र ये तीन ही सिद्धि-मुक्तिके साधन-कारणत्वेन सिद्ध हैं । यह बात ग्रंथान्तरों में अच्छी तरह सिद्ध करके बताई गई है कि मोक्षका साक्षात् कारण इस रत्नत्रयकी पूर्णता ही है। किंतु फिर भी कितने ही जीवोंको इसका श्रद्धान नहीं होता । ऐसे ही जीवोंको मिथ्यादृष्टि कहते हैं। इनके सात भेद है जो कि इस प्रकार हैं:-- तीन तो वे जो कि इन तीनोंमेसे एक एक को ही केवल सम्यग्दर्शन या केवल सम्यग्ज्ञान अथवा केवल सम्यकचारित्रको ही मोक्षका कारण मानते हैं । इसी प्रकार तीन वे जो कि इनमेंसे दो दोको सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञानको अथवा सम्यग्दर्शन और सम्यकचारित्रको यद्वा सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्रको मोक्षका कारण मानते हैं । इसी प्रकार सातवां वह जो कि सम्यग्दर्शनादिक तीनों ही को मोक्षका कारण नहीं मानता। इन सातो ही प्रकारके मिथ्यादृष्टियोंकी बुद्धि सम्यक्त्वरूपी साम्राज्यको स्वरूपसे तथा प्रभावसे विकल बनानेमें अच्छी दक्षता रखती है। इनका विपरीत ज्ञान सहज ही में सम्यक्त्वको नष्ट करदेता है। अतएव सम्यग्दृष्टि भव्योंको इन सातोंका दूर ही से परित्याग करदेना चाहिये। . भावार्थ, रत्नत्रयमेंसे एक तो तीनोंको न माननेवाला, तीन एक एकको न मानने वाले, और तीन दो दोके न माननेवाले इस तरहसे मिथ्यादृष्टियोंके सात भेद हैं, जिनके कि ज्ञान व उपदेशसे सम्यक्त्वका घात होता है। अत एव सम्यग्दृष्टिको उनका त्याग करना ही उचित है । १- प्रकारान्तरसे भी मिथ्यात्वके सात भेद होते हैं जैसा कि पहले बता चुके हैं। अध्याय २२२
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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