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________________ बनगार घर २१४ स्तज्जात्या च कुलेन चोपरि मृषा पश्यन्नऽधः खं क्षिपेः ॥ ८८ ॥ हे जाति और कुलसे अपनेको ऊंचा माननेवाले ! यद्यपि तू सम्यग्दर्शन. सदाचार दानशूरता धन कला सौन्दर्य वीरता नय विनय गाम्भीर्य शौण्डीर्य प्रभृति गुणोंके कारण बडे बडे प्रख्यात-प्रसिद्ध स्त्री पुरुषोंके द्वारा मनुष्योंके हृदयमें चमत्कार पैदा करदेनेवाले कुलमें पूर्वजन्ममें संचित किये हुए पुण्य कर्मके उदयसे उत्पन्न हुआ है। फिर भी स्त्रियोंकी तो बात ही क्या, पुरुषोंको भी प्रायः करके उनके सत्त्वमनोगुणका क्षय करते हुए कलङ्कों-अपवादोंसे दूषित करनेवाले इस कलिकालमें तू जो जाति और कुलके द्वारा साधर्मियोंसे अपनेको उत्कृष्ट समझता है सो तेरी यह समझ ठीक नहीं है। क्योंकि परमार्थसे कुल और जाति की शुद्धिका निश्चय नहीं हो सकता। जैसा कि आगममें भी कहा है अनादाविह संसारे दुवारे मकरध्वजे । - कुले च कामिनीमूले का जातिपरिकल्पना ॥ संसारमें जब तीन बातोंपर विचार करते हैं कि-संसार अनादि है, कामदेव दुर्वार है, और कुलका मूल कामिनी है। तब जातिकी कल्पना क्या ठहरती है ? किसी भी कालमें कामदेवके वशीभूत होकर किसी भी कामिनीने कुलको कलंकित न किया होगा इसका क्या निश्चय है ? अत एव निश्चित समझ कि इस जातिमद और कुलमदके कारण तू अपनेको हीन पदमें ही पटक रहा है। क्योंकि सम्यक्त्वकी विराधना होनेपर हीन पदका प्राप्त होना सुघट है। जैसा कि कहा भी है:-- जातिरूपकुलैश्वर्यशीलज्ञानतपोबलः । कुर्वाणोऽहंकृति नीचं गोत्रं बध्नाति मानवः ।। इन जात्यादिक अष्ट मदोंको धारण करनेवाला पुरुष नीचगोत्रका बंध करता है। अध्याय २१४.
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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