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________________ अनगार २१२ अध्याय २ बच्चेको प्रतिपक्षियों के प्रबल हाथीसे प्रतिजिघांसाका भाव रखकर भिड़ते ही बचा लेता है - भिडने नहीं देता; क्योंकि वह इस समय बच्चा है, किंतु भविष्य में इतना पुष्ट होनेवाला है कि सहज ही में उस प्रबल हाथीका घात कर देगा । इसी प्रकार जो भव्य स्वयं धारण किये हुए व्रतादिका कल्याण चाहता है, उनकी रक्षा करना चाहता और सम्यक्त्वकी आराधना करनेमें उद्यत है उसको चाहिये कि वह अपने सम्यक्त्वरूपी मदोन्मत्त हस्तिपोतको प्रतिजिघांसा से दुर्निवार मिथ्यात्वरूपी प्रतिपक्षकरटी से भिड़ते ही बचाले - भिडने न दे । क्योंकि वह भविष्य में इतना पुष्ट होनेवाला है कि सहज ही में उस प्रति पक्षीका दलन कर ज्ञानचारित्ररूपी सम्पत्तिको पुष्ट करदेगा । प्रौढ सम्यग्दर्शनके धारण करनेवालोंके मद - ज्ञान पूजा कुल जाति आदि अभिमानरूपी मिथ्यात्वके आवेशकी शंका हो सकती है; अत एव उसका निरसन करते हैं। : मा भैषष्टिसिंहेन राजन्वति मनोवने । न मदान्धोऽपि मिध्यात्वगन्धहस्ती चरिष्यति ॥ ८६ ॥ जहां पर दुष्टोंका निग्रह और शिष्टोंका पालन करनेवाला राजा मौजूद है वहां पर दूसरे किसी प्रकार भी आकर पराभव नहीं कर सकते और न कोई भी मदान्ध वहां विप्लव ही कर सकता है । अत एव वहांके जी aat किसी भी प्रकारका त्रास या भय नहीं हो सकता। सिंहके मौजूद रहते हुए क्या गन्ध और मदोन्मत्त भी हस्ती वनको विप्लावित कर सकता है ? कभी नहीं । इसी प्रकार हे अत्यंत दृढ सम्यग्दर्शन के धारण करने. वाले भव्य ! जिस तेरे इच्छानुसार फल देने वाले मनरूपी वनमें सम्यग्दर्शनरूपी केसरी विराजमान है और इसीलिये जिसका कोई दूसरा पराभव नहीं कर सकता; क्या उसको यह मदान्ध -- जाति आदिके मद-अभिमानसे मनुष्योंको अन्धा -- युक्त क्या है और अयुक्त क्या है इसके देखने में असमर्थ, बनादेनेवाला मिथ्यात्व धर्म ० २१२
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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