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________________ बनगार ऊसर बंधके चार भेद बताये है-प्रकृति स्थिति अनुभाग और प्रदेश । अब इन चारोंका स्वरूप बताते हैं ज्ञानावरणाचात्मा प्रकृतिस्तद्विधिरविच्युतिस्तस्मात । स्थितिग्नुभवो रसः स्यादणुगणना कर्मणां प्रवेशश्च ॥ १९ ॥ प्रकृति-यह द्रव्यबंधका एक भेद है। प्रकृति शब्दका अर्थ स्वभाव है। जिस प्रकार निम्बका स्वभाव तिक्तता और गुडका स्वभाव मधुरता होता है उसी प्रकार कर्मस्कन्धोंका भी स्वभाव हुआ करता है। योग्यतानुसार कर्मस्कन्धों में आत्माकी शानादिक शक्तियोंको आवृत-आच्छादित कर सकनेवाली शक्तियों अथवा उन उन कार्योके करसकनेवाले स्वभावोंका आविर्भाव हुआ करता है। इसीको प्रकृतिबंध कहते हैं। इसके स्वभावभेदकी अपेक्षासे आठ भेद हैं-शानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र, अंतराय । इनके स्वभावको आगममें दृष्टान्त देकर बताया गया है। उसकी गाथा इस प्रकार है पडपडिहारसिमज्जाहलिचित्तकुलालभंडयारीणं । जह एदास भावा तह कम्माणं वियाणाहि॥ ___वस्त्र, प्रतीहारी [ ड्योढीवान् ], अक्ष [ तलवार ], मद्य, खोडा, चित्रकार, कुम्भार, और भण्डारी ये उक्त आठ कोंके आठ उदाहरण हैं। जिस प्रकार वस्त्रसे आच्छादित होनेपर वस्तुका ज्ञान नहीं हो सकता उसी प्रकार ज्ञानावरणका. यह स्वभाव होता है कि उसके उदयसे आत्माको ज्ञान नहीं हो सकता । जिस प्रकार प्रतीहारीके बीचमें आजानेपर राजा आदिके दर्शन नहीं हो सकते उसी प्रकार दर्शनावरण के उदय होनेपर पदार्थ दीख नहीं सकते । जिस प्रकार मधुलिप्त छुरीके निमित्तसे सुखदुःखका अनुभव हुआ करता है उसी प्रकार वेदनीय कर्मके उदयसे जीवको सुखदुःखका वेदन-अनुभव हुआ करता है । जिस प्रकार मद्य पीनेसे मनुष्य मो अध्याय
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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