SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ । धर्म अनगार -जिसके गुण और पर्याय ये दो स्वभाव हैं उसको द्रव्य कहते हैं । ये छहो द्रव्य कथंचित् अनित्य हैं। इनमें जो जीव द्रव्य है वह दो प्रकारका है। एक अपने शरीरमें स्थित, दूसरा परके शरीरमें स्थित। पहले प्रकारका जीव अहंप्रत्ययसे सिद्ध होता है-" मैं सुखी हूं," इत्यादि अनुभवके द्वारा अपने शरीरमें स्थित आत्माका स्वयं संवेदन होता है । अत एव वह सिद्ध है । परशरीरमें स्थित आत्मा भी वचन प्रभृति हेतुओंसे सिद्ध होता है । क्योंकि किसी प्रश्नका उत्तर देना या कुछ कहना तब तक नहीं बन सकता जब तक कि उस शरीरमें आत्मा न हो। इसी तरह शरीर वा इन्द्रियोंकी कुछ श्वासोच्छासादिक क्रियाएं वा चेष्टाएं भी ऐसी हैं जो कि विना आत्माके नहीं हो सकती । अत एव उनसे भी परशरीरमें स्थित आत्माका अस्तित्व सिद्ध होता है। पुद्गलद्रव्यका अस्तित्व मूर्तत्व हेतुसे सिद्ध होता है । रूप रस गंध स्पर्श इन चार गुणोंके समूहका नाम मूर्ति है। मूर्ति-ये चारो गुण जिसमें पाये अंय उसको मूर्त कहते हैं। प्रत्येक पुद्गल में ये चारो गुण पाये जाते हैं । परंतु कहीं तो ये चारो ही उद्भूत होते हैं और कहीं कोई उद्भूत, कोई अनुभृत। अत एव इनमें से जहां एक भी दीखता है वहां चारो ही माने जाते हैं। और उस से पुद्गल द्रव्यका अस्तित्व माना जाता है-सिद्ध होता है । इस प्रकार ये दोनो ही द्रव्य प्रत्यक्ष और अनुमान प्रमा णके द्वारा सिद्ध हैं। . .. H. शेषके चार द्रव्य --धर्म अधर्म काल और आकाश भी हेतु प्रमाणसे सिद्ध हैं । क्योंकि इन चार द्रव्योंके विना गति स्थिति परिणमन और अवगाहन ये चारो ही एक कालमें सबमें नहीं बन सकते । जिस समय जीव या पुद्गल गमन करते हैं या ठहरते हैं उसी समयमें उनका परिणमन और अवगाहन भी हो रहा है। एक समयमें सब पर्यााँका बाह्य सहायक एक ही द्रव्य नहीं हो सकता। एक द्रव्य एक समय में एक ही कार्यका साधक हो सकता है। अत एव एक समय में होनेवाले इन चार कार्यों के भी बाह्य सहायक चार ही द्रव्य होने चाहिये । जो गतिका सहायक है उसको धर्मद्रव्य, जो स्थितीका सहायक है उसको अधर्मद्रव्य, जो परिणमनका सहायक है उसको कालद्रव्य और जो अवगाहनका सहायक है उसको आकाशद्रव्य कहते हैं । इस प्रकार छहो द्रव्योंका अस्तित्व प्रमाणस सिद्धहै। अध्याय
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy