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________________ खनमार १२६ बध्याय २ कर अपने हितकी इच्छा रखनेवाले विचारशील सुमुक्षुओंको इन शिव सुगत सांख्य प्रभृति आप्ताभासोंसे उपेक्षा करना ही उचित है- इनसे न राग करना चाहिये और न द्वेष । युक्तियों से भले प्रकार सिद्ध परमागमके द्वारा जिनने पदार्थोंका अर्थ समझलिया है और उसके अनुसार जो व्यवहार करता है ऐसा पुरुष ही मिध्यात्वपर विजय प्राप्त कर सकता है । इसी बातको प्रकट करते हैं: यो युक्तः यानुगृहीत याप्तवचनज्ञप्त्यात्मनि स्फारिते, - वर्थेषु प्रतिपक्षलक्षितसदाद्यानन्त्यधर्मात्मसु । नीत्या क्षिप्तविपक्षया तदविनाभूतान्यधर्मोत्थया, धर्मं कस्यचिदर्पितं व्यवहरत्याहन्ति सोऽन्तस्तमः ॥ २३ ॥ ओवचनोंके द्वारा उत्पन्न होनेवाले ज्ञानको आगम कहते हैं। यहांपर वचनशब्द उपलक्षण है। अत एव आसके हाथ वगैरह के संकेत से उत्पन्न होनेवाले ज्ञानको भी आगम कहते हैं । " सभी पदार्थ अनेकान्तात्मक - अनन्तधर्मात्मक हैं; क्योंकि वे सत् हैं। जो जो सत् होते हैं वे वे अनंतधर्मात्मक होते हैं। अथवा आप्तके वाक्य प्रमाण हैं; क्योंकि वे प्रत्यक्ष और अनुमान प्रमाणसे अविरुद्ध हैं। जो जो इनसे अविरुद्ध होते हैं वे सब प्रमाण होते हैं । " इत्यादि अनेक युक्तियोंके द्वारा इस आगमकी प्रामाणिकता भले प्रकार सिद्ध है । इस युक्तिसिद्ध आ गमके द्वारा अन्तस्तत्वमें प्रकाशित हुए - स्फुरायमान हुए नास्तित्व अनित्यत्त्व अनेकत्व प्रभृति अनेक १ जीवो त्ति हवदि वेदा उवओ विसेसिदो पहू कत्ता । भोत्ता य देहमेत्तो ण हु मुत्तो कम्मसंजुत्तो ॥ इत्यादि । धर्म १३६.
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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