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अनगार
प्योंको नियमसे और अच्छी तरहसे प्रवृत्त करदेता है। भावार्थ-इसका कारण यह हो सकता है कि महादेवको उनके सिद्धांतमें भूतोंका संहार करनेवाला माना है। इसलिये उनका सिद्धांत आदर्शको पूज्य बताकर पूजकोंको आदर्शक अनुसार चलनेका-भूतघात-प्राणिवध करनेका अवश्य ही उपदेश देता है । अत एव उसकी पूजामात्रसे मुक्ति माननेवाले वैनयिक भी निःशंक होकर उस कर्ममें प्रवृत्त हो सकते हैं।
विपरीत मिथ्यात्वको छोडनेकेलिये प्रेरणा करते हैं:येन प्रमाणतः क्षिप्तां श्रद्दधानाः श्रुति रसात् ।
चरन्ति श्रेयसे हिंसां स हिंस्या मोहराक्षसः ॥ ७ ॥ अपना हित चाहनेवालोंको उस विपरीताभिनिवेशके उत्पन्न करनेवाले मोहकर्मरूपी राक्षस-निशाचरका ही बध करना उचित है। जिसके कि वशमें पडकर ये प्राणी-विपरीतमिथ्यादृष्टि लोक प्रमाणसे-“वेद आप्तप्रणीत नहीं है। क्योंकि वह पशुवधका उपदेश देता है" इत्यादि युक्तियोंके द्वारा खण्डित किये जानेपर भी उस श्रुति-वेदवाक्यका ही श्रद्धान करते और कल्याणकेलिये-जिससे कि स्वर्गादिककी प्राप्ति हो सके, उस पुण्यकेलिये हिंसाका आचरण किया करते हैं । • संशय मिथ्यात्वकी निन्दा करनेके अभिप्रायसे कलिकालमें संशय मिथ्यादृष्टियोंके साहाय्यको प्रकाशित करते हैं:
अन्त:स्खलच्छल्यमिव प्रविष्टं रूपं खमेव स्ववधाय येषाम ।
तेषां हि भाग्यैः कलिरेष नूनं तपत्यलं लोकविवेकमश्नन् ॥ ८॥ जिनका कि निजका वह स्वरूप जिसमें कि पूर्वोक्त "केवली कवलाहारी हैं या अन्य प्रकारके, स्खी उसी
अध्याय
PUTISATES KASANT