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अनगार
धर्म
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मिथ्यात्वके पांच भेद हैं-एकान्त विनय विपर्यय संशय और अज्ञान । किसी एक धर्मको-अंशको देखकर समस्त वस्तुको सर्वथा वैसा ही मानना इसको एकान्त मिथ्यात्व कहते हैं। और बैसा मानने या प्रणयन करनेवाले बौद्धादिकोंको एकान्त मिथ्यादृष्टि कहते हैं। समीचीन और मिथ्या दोना ही प्रकारके देवगुरु शास्त्रको समान समझ कर वैसी ही दोनोंकी एकसी भक्ति आदि करना, इसको विनय मिथ्यात्व कहते हैं।
और इसके प्रणेता शैवादिकोंको वैनयिक कहते हैं । वस्तुतत्वके विपरीत श्रद्धानको विपर्यय मिथ्यात्व और उसके प्रणेता याज्ञिक ब्राह्मणादिकोंको विपरीत मिथ्यादृष्टि कहते हैं । "केवली कवलाहारी ही होते हैं अथवा उसके विपरीत" यद्वा "स्त्रीको उसी भवसे मोक्ष होती है या नहीं" इस तरहकी जिसमें चलायमान प्रीति पाई जाय उस मिथ्या श्रद्धानको संशयमिथ्यात्व और उसके प्रणेता श्वेताम्बरादिकको संशयमिथ्यादृष्टि कहते हैं । सर्वज्ञा दिके विषयमें किसी भी प्रकारका विश्वास न करनेको या " अज्ञानसे ही मोक्ष होती है " इस श्रद्धानको अज्ञा न मिथ्यात्व कहते हैं। और उसके प्रणेता मस्करी आदिको अज्ञान मिथ्यादृष्टि कहते हैं।
पार्श्वनाथ भगवान्के तीर्थमें और महावीर स्वामीके समयमें मस्करी पूरण नामका एक ऋषि हागया है । वह ग्यारह अंगका पाठी था। वह चाहता था कि मैं केवल ज्ञान उत्पन्न होते ही वीर भगवान्की दिव्यध्वनि सुनूं-मेरे निमित्तसे ही उनकी दिव्यध्वनि खिरना सुरू हो और मैं उनका गणधर बनूं । इसलिये वह केवल ज्ञान होते ही महावीरस्वापीके समवसरणमें गया। किंतु उसके निमित्तसे भगवान्की दिव्यध्वनि न निकली और गौतमके निमित्तसे निकली । इसलिये उसको यह मत्सरता उत्पन्न हुई कि इन्होंने ग्यारह अंगके धारक मेरे निमित्तसे अपनी दिव्यध्वनिका निर्गम न किया किंतु अपने शिष्य गौतमके निमित्तसे किया । इस मत्सरताके कारण वह विरुद्ध होकर और ये सर्वज्ञ ही नहीं ऐसा मानकर समवसरणके बाहर आया और आकर उसने अपना यह मत प्रकाशित किया “ अज्ञानसे ही मोक्ष होती है " । अतएव अज्ञान मिथ्यात्वका प्रणेता मस्करी माना जाता है।
पांचो प्रकारके मिथ्यात्वोंमें दोष दिखानके अभिप्रायसे क्रमानुसार पहले एकान्त मिथ्यात्वके दोष बताते हैं
अध्याय
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