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________________ अनगार १०१ निश्चय रत्नत्रयकी प्राप्ति किससे होती है सो बताते हैं:.... उद्द्योतोयवनिर्वाहसिद्धिनिस्तरणैर्भजन् । भव्यो मुक्तिपथं भाक्तं साधयत्येव वास्तवम् ॥ ९२ ॥ . उद्योत उद्यव निर्वाह सिद्धि और निस्तरण इन उपायोंके द्वारा भेदरूप व्यावहारिक सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान सम्यक्चारित्ररूप मोक्षमार्गका. आराधन करनेवाला भव्य पुरुष वास्तविक-पारमार्थिक मोक्षमागको नियमसे प्राप्त किया करता है। ... व्यावहारिक रत्नत्रयका लक्षण बताते हैं: श्रद्धानं पुरुषादितत्त्वविषयं सदर्शनं बोधनं, ध्यायय असमनं भावयतो रत्नत्रयमस्ति कर्मबन्धो यः। स विपक्षकतोवश्यं मोक्षोपायो न बन्धनोपायः॥ ___ आगममें रत्नत्रयको मोक्षका ही कारण माना है और किसीका भी नहीं । पुण्यकर्मका जो आस्रव हुआ करता है यह शुभोपयोगका अपराध है । अपूर्ण रत्नत्रयका आराधन करनेवालेके जो कर्म-पुण्यकर्मका बंध हुआ करता है वह अवश्य ही मोक्षका उपाय है; न कि बंधनका । क्योंकि उसका बंध करनेवाला संसारके कारणोंसे विरुद्ध भावोंको रखता है । अतएव उसका संचित पुण्यकर्म अथवा उसका फल ऐसा होता है जिससे कि मोक्षकी सिद्धिमें सहायता प्राप्त हो । वह पुण्य संसार या उसके कारण कर्मबंधका कारण नहीं होता। १--उद्द्योतादिकका लक्षण आगे चलकर बतावेंगे। areSSERESTEAMINASE BREASEASANA
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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