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मो.मा.
प्रकाश
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स्वरूपका श्रद्धान जैसा छद्मस्थके पाइए है, तैसा ही केवलीके पाइए है । बहुरि यद्यपि केवली सिद्ध भगवान् अन्यपदार्थनिकों भी प्रतीति लिए जाने हैं, तथापि ते पदार्थ प्रयोजनभूत नहीं । तैं सम्यक्त्वगुणविषै सप्त तत्त्वनिहीका श्रद्धान ग्रहण किया है । केवली सिद्धभगवान् रागादिरूप न परिणमें हैं। संसार अवस्थाकों न चाहें हैं । सो यह इस श्रद्धानका बल जानना । बहुरि प्रश्न – जो सम्यग्दर्शन तो मोक्षमार्ग कह्या था, मोदविषै याका सद्भाव कैसे कहिए है । ताका उत्तर- कोई कारण ऐसा भी हो है, जो कार्य सिद्ध भए भी नष्ट न हो है । जैसे काढू वृक्षकै कोई एक शाखाकरि अनेक शाखायुक्त अवस्था भई, तिसकों होते वह एक शाखा नष्ट न हो है । तैसें काहू आत्माकै सम्यक्त्व गुणकरि अनेकगुणयुक्त मुक्त अवस्था भई, ताकों हो सम्यक्त्व गुण नष्ट न हो है । ऐसें केवली सिद्धभगवान के भी तत्त्वार्थश्रद्धान लक्षण ही सम्यक्त्व पाइए है । तातैं तहां अव्याप्तिपनौ नाहीं है । बहुरि प्रश्न – मिथ्यादृष्टी के भी तत्त्वश्रद्धान हो है, ऐसा शास्त्रविषै निरूपण है । प्रवचनसारविषै आत्मज्ञानशून्य तत्त्वार्थश्रद्धान कार्यकारी का है । तातैं सम्यक्वका लक्षण तत्त्वार्थश्रद्धान कया है, तिसविषै प्रतिव्याप्ति दूषण लागे है । ताका समाधान,
मिथ्यादृष्टीकै जो तत्त्वश्रद्धान कया है, सो नामनिक्षेपकरि कया है । जामैं तत्त्वश्रद्धानका गुण नाहीं, अर व्यवहारविषै जाका नाम तत्त्वश्रद्धान कहिए, सो मिथ्यादृष्टीकै हो है । अथवा
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