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________________ । मो.मा. प्रकाश -- करना था। ताका उत्तर--- . सरागी जीवनिका मन केवल वैराग्यकथानविषे लागे नाही, तातें जैसे बालकों बतासाकै आश्रय औषधि दीजिए, तैसे सरागीको भोगादिकथनकै आश्रय धर्मविर्षे रुचि। कराईए है । बहुरि तू कहेगा--ऐसे है, तो विरामी पुरुषनिकों तो ऐसे ग्रंथनिका अभ्यास | करना युक्त नाहीं । ताका उत्तर-- जिनकै अंतरंगविषै रागभाव नाही, तिनके श्रृंगारादि कथन सुनें रागादि उपजे हो नाहीं । यह जानै, ऐसे ही यहां कथन करनेको पद्धति है। बहुरि तू कहैगा-जिनकै श्रृंगारादि कथन सुनें रागादि होय आवै, तिनकों तो वैता कथन सुनना योग्य नाहीं।। ताका उत्तर जहां धनहीका तो प्रयोजन अर जहां तहां धर्मको पोषै, ऐसे जैनपुराणादिक तिनविर्षे प्रसंग पाय श्रृंगारादिकका कथन किया, ताको सुने भी जो बहुत रागी भया, तो वह अन्यत्र। कहां विरागी होगा, पुराण सुनना छोड़ि और कार्य भी ऐसा ही करेगा, जहां बहुत रागादि होय । ताते वाकै भी पुराण सुनें थोरा बहुत धर्मबुद्धि होय तो होय और कार्यनितें यह कार्य भला ही है। बहुरि कोई कहै-प्रथमानुयोगविषै अन्य जीवनिको कहानी है, वाने ना कहा प्रयोजन सधै है । ताको कहिर है -6000pcfoo8000080pcomicrookaooooooooo-00000196/oREC100-3600kgeOpteokalsdoog समसामान्य नाम
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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