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मो.मा মাখ
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यह सिद्धांतका शब्द था नाहीं । परन्तु आपापरका भावरूप ध्यान किया, तातें केवली भया । अर ग्यारह अंगका पाठी जीवादितत्त्वनिका विशेषभेद जाने, परन्तु भासे नाही, तातै मिथ्या-1 दृष्टी ही रहै है । अब याकै तत्वश्रद्धान किस प्रकार हो है, सो कहिए है
जिनशास्त्रनिविष कहे जीवके त्रस स्थावरादिरूप वा गुणस्थान मार्गणादिरूप भेदनिको । जाने है अर जीवके पुद्गलादि भेदनिकों वा तिनके वर्णादि विशेष तिनकों जाने है । परन्तु । अध्यात्मशास्त्रनिविष भेदविज्ञानको कारणभूत वा वीतरागदशा होनेकौं कारणभूत जैसे निरूपण | किया है, तैसें न जाने है। बहुरि किसी प्रसंगते तैसें भी जानना होय, तो शास्त्र अनुसार जानि ले है। परंतु आपों आप जानि परका अंश भी न मिलावना अर आपका अंश भी। परविष न मिलावना, ऐसा सांचा श्रद्धान नाहीं करै है। जैसे अन्य मिथ्यादृष्टी निर्धारविना ।। पर्यायबुद्धिकरि जानपनाविर्षे वा वर्णादिवि अहंबुद्धि धारे हैं, तैसें यह भी आत्माश्रित ज्ञानादिविषे वा शरीराश्रित उपदेश उपवासादि क्रियानिविर्षे आपो माने है। बहुरि शास्त्रकै अनु|सार कबहू सांची बात भी बनावे, परन्तु अंतरंग निर्धाररूप श्रद्धान नाहीं। ताते जैसे मत
वाला माताकों माता भी कहै, तो स्याना नाहीं । तैसें याकौं सम्यक्ती न कहिए । बहुरि जैसे | कोई औरहीकी बातें करता होय, तैसें आत्माका कथन करे । परन्तु यह आत्मा में हूं, ऐसा | भाव नाहीं भासे । बहुरि जैसे कोई औरकू औरतें भिन्न बतावता होय, तैसें आत्मा शरीरको
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