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________________ कारणवरण श्रावकाचार है उनको देव मानना ऐसा है जैसे (अंध) अन्धेको (बंधन) अंधे द्वारा (दृष्यते ) मार्ग दिखाया जावे (किं) किसतरह ( मार्गे) मार्गमें (प्रवेशं च ) प्रवेश होसकेगा ! (ये) ये अदेव तो (अवकूपे) अंधे कृपमें (पति) डाल देते हैं। विशेषार्थ-यद्यपि कुदेवोंके भीतर अदेव भी गभित हैं। तथापि जिनमें देवपना, दीप्तमानपना, व देवगतिपना विद्यमान है वे देव हैं उनमें वीतराग सर्वज्ञपना न होनेसे वे रागी द्वेषी देव हैं अतएव देव हैं। इनके सिवाय जिनमें देवपना बिलकुल भी न हो उनको कुदेव कहते हैं जैसे १ तिर्यंचगति वाले प्राणियोंको देव मान लेना जैसे-गौको देव मानना, मोरको पूजना, हाथी घोड़ा पूजना, पीपल पूजना, बड़ पूजना, तुलसी वृक्ष पूजना, अग्नि पूजना, समुद्र पूजना, नदी पूजना, वायुको देव मानना, आदि । तथा जो मात्र जड़ अचेतन हैं जिनसे देवपनका कुछ भी बोध नहीं होता है उनको देव मानके पूजना जैसे कलम, दावत, थैली, घरकी व दुकानकी देहली व कहीं इधर उधर पड़े हुए पत्थरको देव मानके पूजना, तलवारको पूजना, चकी चूल्हा पूजना, चाक पूजना, घड़ोंको पूजना । इत्यादि सर्वको देव मानना, ये सर्व अदेव हैं । क्योंकि इनमें न रागद्वेष सहित कुदेवोंका भाव है और न वीतराग सर्वज्ञके स्वरूपका झलकाव है; ये तो मात्र कल्पना किये हुए देव हैं। इन अदेवोंकी भक्ति करना व इनसे सुख होना मानना ऐसी ही मूढता है कि जैसे कोई अंधा हो और वह मार्ग भूल जावे तब दूसरा अंधा कहे कि चलो मैं मार्ग बता दूंगा। अंधा अंधेको ले चला । उस बतानेवाले अंधेको भी माग नहीं मालूम था। ऐसा अंधा मार्गप्रदर्शक उस दूसरे अंधेको लेजाकर आगे एक अंध कूपमें गिरा देता है व आप भी गिर जाता है। मार्गको न जाननेवाले अंधेसे अंधेको मार्ग किस तरह मिल सकता है। ये पशु व वृक्ष आदि व अचेतन जड़ आदि जिनसे सुदेव पनेका किंचित् भी बोध नहीं होता है स्वयं अज्ञानी हैं व ज्ञान रहित हैं। स्वयं संसारमें पड़े हैं, दुःख उठा रहे हैं या बिलकुल अचेतन हैं उनकी भक्ति सिवाय भक्तको अंधा रखनेके और क्या लाभ देसक्ती है। जो लोग संसाराशक्त हैं वे इन अदेवोंको भी धनकी, पुत्रकी, जयकी, निरोग होनेकी इत्यादि लालसाके वशीभूत हो पूजते हैं और अपने मिथ्यात्वको दृढ़ करते हैं। श्री अमितगति महाराजने श्रावकाचारमें अदेवोंका कुछ स्वरूप बताया है।
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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