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मोमा.
माने, सो बंध है । बहुरि जो सर्वथा ही बंधमुक्ति न होय, तो सो जोव बंध है, ऐसा काहेको कहैं । अरबंधके नाशका मुक्त होनेका उद्यम काहेकौं करिए है । ताते द्रव्यदृष्टिकरि एकदशा है। पर्यायदृष्टिकरि अनेक अवस्था हो हैं, ऐसा मानना योग्य है। ऐसे ही अनेक प्रकारकरि । केवल निश्चयनयका अभिप्रायते विरुद्ध भधानादिक करे है। जिनवानीविषै तौ नाना नयअपेक्षा कहीं। कैसा कहि कैसा निरूपण किया है। यह अपने अभिप्रायतें निश्चयनयकी मुख्यताकरि जो कथन किया होय, ताहीको प्रहिकरि मिथ्यादृष्टिकों धारे है । बहुरि जिनवानी| विष तौ सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्रकी एकता भए मोक्षमार्ग कह्या है। सो याकै सम्यग्दर्शन ज्ञानविषे सप्ततत्त्वनिका श्रद्धान वा जानना भया चाहिए । सो तिनका विचार नाहीं। अर चारित्रविषे रागादिक दूरि किया चाहिए, ताका उद्यम नाहीं। एक अपने आत्माकों शुद्ध अनुभवना इसहीको मोक्षमार्ग मानि सन्तुष्ट भया है । ताका अभ्यास करनेकों अंतरंगविणे , | ऐसा चितवन किया चाहै है-में सिद्धसमान शुद्ध हों, केवलज्ञानादि सहित हों, द्रव्यकर्म नो
कर्म रहित हों, परमानन्दमय हों, जन्ममरणादि दुःख मेरै नाही, इत्यादि चितवन करे है। |सो यहां पूछिए है-यह चितवन जो द्रव्यदृष्टि करि करो हो, तो द्रव्य तौ शुद्ध अशुद्ध सर्वपर्यायनिका समुदाय है । तुम शुद्ध ही अनुभव काहेकों करौ हो । अर पर्यायदृष्टिकरि करो हो, तो तुम्हारे तो वर्तमान अशुद्ध पर्याय है । तुम आपाकों शुद्ध कैसे मानो हो । बहुरि जो शक्ति
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