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मो.मा. जानोवस्तुविषै जो परनिमित्त भाव होय, ताका नाम औपाधिकभाव है । अर परनिमिप्रकाश
तविना जो भाव होय, सो ताका नाम खभावभाव है । सो जैसे जलकै अग्निका निमित्त होते, उणपनो भयो, तहां शीतलपनाका अभाव ही है । परन्तु अग्निका निमित्त मिटे शीतलता ही।
होय जाय । तातें सदाकाल जलका स्वभाव शीतल कहिए । जातें ऐसी शक्ति सदा पाइये है। । बहुरि व्यक्त भए स्वभाव व्यक्त भया कहिए। कदाचित् व्यक्तरूप हो है । तैसें आत्माकै कर्म ।
का निमित्त होते अन्यरूप भया, तहां केवलज्ञानका अभाव ही है । परन्तु कर्मका निमित्त मिटे | . सर्वदा केवलज्ञान होय जाय । तातें सदाकाल आत्माका स्वभाव केवलज्ञान कहिए है। जाते ऐसी शक्ति सदा पाईये है । व्यक्त भए स्वभाव व्यक्त झया कहिए । बहुरि जैसे शीतलखभावकरि उष्ण जलकों शीतल मानि पानादि करे तो दाझना ही होय । तैसें केवलज्ञानस्वभावकरि अशुद्ध आत्माकों केवलज्ञानी मानि अनुभवे, तो दुःखी ही होय । ऐसें जे केवलज्ञानादिक
रूप पालाकों अनुभवें हे, ते मिथ्यादृष्टी हैं। बटुरि रागादिक भाव आपके प्रत्यक्ष होते भ्रमH करि आत्माकों रागादिरहित माने, सो पूछिए है-ए रागादिक तो होते देखिए है, ए किस।
द्रव्यके अस्तित्वविष है। जो शरीर वा कर्मपुद्गलके अस्तित्वविर्षे होय, तौ ए भाव अचेतन | वा मूर्गीक होंय । सा तो ए रागादिक प्रत्यक्ष चेतनता लिए अमूर्तीकभाव भासे हैं। ताते ए. भाव आत्माहोके हैं। सो ही समयसारके कल राविषे कया है
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