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________________ मो.मा. प्रकाश | कह्या ही नाहीं । अर पुरुषहीकों प्रकृतिसंयोग भए जीवसंज्ञा हो है, तो पुरुष न्यारे न्यारे || प्रकृतिसहित हैं पीछे साधनकरि कोई पुरुष रहित हो हैं, ऐसा सिद्ध भया-पुरुष एक न ठहराथ । बहुरि प्रकृति पुरुषकी भूलि है, कि कोई व्यंतरीवत् जुदी ही है सो जीवकों पानि लागे है । जो याकी भूलि है, तौ प्रकृतिते इन्द्रियादिक तत्त्व उपजे कैरौं मानिए । अर जुदी है तो वै भी एक वस्तु है सर्व कर्त्तव्य वाका ठहरथ।। पुरुषका किछु कर्त्तव्य रह्या ही नाही | काहेको उपदेश दीजिए है। ऐसें यह मोक्षमार्गपना मानना मिथ्या है। बहुरि तहां प्रत्यक्ष || अनुमान आगम ए तीन प्रमाण कहै हैं, सो तिनिका सत्य असत्यका निर्णय जैनके न्याय ग्रंथनितें जानना । बहुरि इस सांख्यमतविषै कोई ईश्वरकों न माने हैं। कोई एक पुरुषकों ईश्वर माने हैं। कोई शिवकों देव मानै हैं । कोई नारायणकों माने हैं । अपनी इच्छा अनुसार कल्पना करै हैं किछ निश्चय है नाहीं । बहुरि इस मतविष केई जटा धारै हैं, केई चोटी राखें । हैं, केई मुंडित हो हैं, केई काथे वस्त्र पहरें हैं इत्यादि अनेक प्रकार भेषधारि तत्वज्ञानका आश्रयकार महन्त कहावें हैं ऐसे सांख्यमतका निरूपण किया। बहुरि शिवमतविर्षे दोय भेद हैं-नैयायिक वैशेषिक। तहां नैयायिकविषे सोलह तत्व कहै हैं । | प्रमाण, प्रमेय, संशय, प्रयोजन, दृष्टान्त, सिद्धान्त, अवयव, तर्क, निर्णय, वाद, जल्प, वितंडा, | हेवाभास, छल, जाति, निग्रहस्थान । तहां प्रमाण च्यार प्रकार कहै हैं । प्रत्यक्ष, अनुमान, ఆధాంతం నిరంకుశ నందనం 12 గంటల ముందు १
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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