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मो.मा. प्रकाश
|मिल्या कहो परंतु परमार्थते तो मिल्या नाहीं । बहुरि अस्तित्व नाहीं रहै है तो आपका अभाव होना कौन चाहै तातें यह भी न बने । बहुरि एक प्रकार मोक्षका स्वरूप ऐसा भी केई कहै हैं
—जो बुधादिकका नाश भए मोक्ष हो है । सो शरीरके अंगभूत मन इंद्रिय तिनिकै आधीन | ज्ञान न रह्या । ऐसे कहना तो काम क्रोधादिक दूरि भए बने है अर तहां चेतनताका भी अभाव | भया मानिए तौ पाषाणादि समान जड़ अवस्थाकों कैसे भली मानिए । बहुरि भला साधन । किए जानपनेका अभाव होना कैसें मानिए । बहुरि लोकविष ज्ञानकी महंततातें जड़पनाकी | | महंतता नाही तातै यह भी बनै नाहीं । ऐसे ही अनेकप्रकार कल्पनाकरि मोक्षकों बतावे सो | किछू यथार्थ तो जाने नाहीं संसार अवस्थाविष कल्पनाकरि अपनी इच्छा अनुसारि बकै हैं । | या प्रकार वेदांतादि प्रतनिविषे अन्याय निरूपण करै हैं । बहुरि ऐसे ही मुसलमानोंके मतविषै अन्यथा निरूपण करिए है। जैसे वे ब्रह्मकौं सर्वव्यापी निरंजन सर्वका कर्ता हर्ता माने हैं तैसें | ए खुदाकों माने हैं । वहुरि जैसे वै अवतार भए माने है तैसें ए पैगंबर भए मानें हैं। जैसें वै | पुण्य पापका लेखा लेना यथायोग्य दंडादिक देना ठहरावै हैं तैसें ए खुदाकै ठहराधे हैं । बहुरि | जैसे वै गउ आदिको पूज्य कहै हैं, तैसें ए सूकर आदिकों कहै हैं । ए सब तिर्यंचादिक हैं। | बहुरि जैसें वै ईश्वरकी भक्तिते मुक्ति कहै हैं तैसें ए खुदाकी भक्तितें कहै हैं। बहुरि वे कहीं। दया पोर्षे कहीं हिंसापो, तैसे ए भी कहीं रहम करना पो कहीं जिबहकरना पोर्षे हैं । बहरि ।