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________________ - मोमा । नानि करी होसी । बहुरि एक राधाहीविय आसक्त न भया अन्य गोपिका कुब्जा आदि अनेक प्रकाश परस्त्रीनिविषै भी आसक्त भया । सो यह अवतार ऐसे ही कार्यका अधिकारी भयो । बहुरि । कहें-- लक्ष्मी थाकी स्त्री है बहुरि धनादिकको लक्ष्मी कहें सो ए तो पृथ्वी आदिविषै जैसैं| पाषाण धूलि है तैसें ही रत्न सुवर्णादि देखिए है। जुदी ही लक्ष्मी कौन जाका भर्तार नारा यण है । बहुरि सीतादिको मायाका स्वरूप कहें सो इनिविर्षे आसक्त भए तब मायाविषै आ।। सक्त कैसे न भए। कहां तांई कहिए जो निरूपस करें सो विरुद्ध करें । परन्तु जीवनिकों भोगा | दिककी वार्ता सुहावै ताते तिनिका कहना बल्लभ लागे है । ऐसें अवतार कहे हैं इनिकों ब्रह्म। स्वरूप कहै हैं । बहुरि औरनिकों भी ब्रह्मस्वरूप कहै हैं । एक तौ महादेवकों ब्रह्मस्वरूप माने | हैं। ता• योगी कहै हैं, सो योग किस अर्थि ग्रह्या । बहुरि मृगछाला भस्मी धारै है सो किस | । अथि धारी है। बहुरि रुंडमाला पहरे है सो हाड़ांका छीवना भी निंद्य है ताकू गलेमें किस अर्थि | । धारै है। सर्पादि सहित है सो यामैं कौन बड़ाई है । आक धतारू खाय है सो यामें कोन भलाई | है। त्रिशूलादि राखै है सो कौनका भय है । बहुरि पार्वती संग लिए है सो योगी होय स्त्री | राखै है सो ऐसा विपरीतपना काहेकौं किया। कामासक्त था तो घरहीमें रह्या होता । बहुरि वानै नामाप्रकार विपरीत चेष्टा कीन्हीं ताका प्रयोजन तौ किछू भासै नाहीं । बाउलेकासा कर्त्तव्य भास, ताकौं ब्रह्मस्वरूप कहें। PROMC000370013800106IONARTOORB800%DoolkylaodoodookaMOORIGI00000000000000RNAAHERAPIESong ఆరు ఆనింసుంకం 10000000000 నుంచి నిరంతరం १७०
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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