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________________ मो.मा. प्रकाश FoolgdooEROO90ofactorsO080p@footpisoolaGroraccookaarokacookzdooraciooperoofOEMOMEGRAMRCELS भए कहो परन्तु पहिले लोकरचना करते ही इनकों बनाए सो किस अर्थि बनाए । बहुरि जीव पीछे पापरूप परिणए तो कैसें परिणए । जो आप ही परिणए कहोगे तो जानिए है ब्रह्मा पहिलै । | तौ निपजाए पीछे वाकै आधीन न रहे इसकारणनै ब्रह्माकौं दुख ही भया । बहुरि कहोगे| ब्रह्माके परिणमाए परिणमे हैं तो तिनिकों पापरूप काहेकौं परिणमाए ।' जीव तो आपके निप जाए थे उनका बुरा किस अर्थि किया। ताते ऐसे भी न बने। बहुरि अजीवनिविषे सुवर्ण | | सुगन्धादि सहित वस्तु बनाए, सो तो रमणे के अर्थि बनाए कुवर्ण दुर्गन्धादिसहित दुखदायक वस्तु बनाए सो किस अर्थि बनाए । इनिका दर्शनादिकरि ब्रह्माकै किछू सुख तो नाही उपजता होगा। बहुरि तू कहेगा, पापी जीवनिकों दुख देनेके अर्थि बनाए, तो आपहीके निपजाए जीव तिनिस्यों ऐसी दुष्टता काहेको करी जो तिनिकों दुखदायक सामग्री पहिले ही बनाई। | बहुरि धूलि पर्वतादिक केतीक वस्तु ऐसी हैं जे रमणीक भी नाहीं अर दुखदायक भी नाहीं । तिनिकों किस अर्थि बनाए । स्वयमेव तो जैसे तैसें ही होय अर बनावनहारा बनावे सो प्रयोजनलिए ही बनावै । तातै 'ब्रह्म सृष्टिका कर्ता है ।' यह मिथ्यावचय है। बहुरि विष्णुको लोकका रक्षक कहै हैं सो भी मिथ्या है। जाते रक्षक होय सो तौ दोय ही कार्य करें । एक तो दुख उपजावनेके कारण न होने दे अर एक विनसनेका कारण न होने दे । सो तो लोकविषे दुखहीके उपजनके कारण जहां तहां देखिए है। अर तिनिकरि १६०
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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