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मो.मा.
प्रकाश
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.. . दोहा। इस भवके सब दुखनिके, कारन मिथ्याभाव ।
तिनिकी सत्ता नाश करि, प्रगटै मोक्षउपाव ॥१॥ अब इहां संसार दुखनिके बीजभूत मिथ्यादर्शन मिथ्याज्ञान मि-याचारित्र हैं तिनिका || | स्वरूप विशेष निरूपण कीजिए है। जैसें वैद्य है सो रोगके कारननिका विशेष कहै तौ रोगी ।
कुपथ्य सेवन न करै तब रोगरहित होय, तैसें इहां संसारके कारननिका विशेष निरूपण करिए है । जातै संसारी मिथ्यात्वादिकका सेवन न करे तब संसाररहित होय तातै मिथ्यादर्शना| दिकनिका विशेष कहिए है,. यह जीव अनादित कर्मसंबंधसहित है । याकै दर्शनमोहके उदय भया जो अत| त्वश्रद्धान ताका नाम मिथ्यादर्शन है। जाते तद्भाव जो श्रद्धान करने योग्य अर्थ है ताका जो भाव स्वरूप ताका नाम तत्व है। अर तत्व नाहीं ताका नाम अतत्त्व है। अर अतत्व है सो| असत्य है ताते इसहीका नाम मिथ्या है। बहुरि यह ऐसे ही है, ऐसा प्रतीतिभाव ताका । नाम श्रद्धान है। इहां श्रद्धानहीका नाम दर्शन है । यद्यपि दर्शनशब्द का अर्थ सामान्य अवलोकन है तथापि इहां प्रकरणके वशते इस ही धातुका अर्थ श्रद्धान जानना । सो ऐसे ही | सर्वार्थसिद्धिनाम सूत्रकी टीकाविषै कह्या है । जातै सामान्य अवलोकन संसारमोक्षकों कारण