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मो.मा. प्रकाश
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| मिले तावत् तो वाकी इच्छाकरि आकुंल होई। अर वह मिल्या अर उसही समय अन्यकों भोगनेकी इच्छा होई जाय, तब ताकरि आकुल होइ । जैसैं काहूको स्वाद लेनेकी इच्छा भई । थी वाका आखाद जिस समय भया तिस ही समय अन्य वस्तुका खाद लेनेकी वा स्पर्शनादि | करनेकी इच्छा उपजै हैं । अथवा एक ही वस्तुको पहिले अन्य प्रकार भोगनेकी इच्छा होइ वह यावत् न मिले तावत् वाकी आकुलता रहै । अर वह भोग भया अर उस ही समय अन्यप्रकार भोगनेकी इच्छा होइ । जैसें स्त्रीको देख्या चाहै था जिस समय अवलोकन भया उसही समय है। | रमने की इच्छा हो है। बहुरि ऐसें भोग भोगतें भी तिनिके अन्य उपाय करनेकी आकुलता हो |||
है तो तिनिकों छोरि अन्य उपाय करनेकौं लागै है। तहां अनेक प्रकार आकुलता हो है । देखो | एक धनका उपाय करनेमें व्यापारादिक करतें बहुरि वाकी रक्षा करनेमें सावधानी करतें केती |
आकुलता हो हैं । बहुरि क्षुधा तृषा शीत उष्ण मल श्लेष्मादि असाताका उदय आया ही करें। | ताका निराकरणकरि सुख माने सो काहेका सुख है। यह तो रोगका प्रतीकार है। यावत् चुधादिक रहै तावत् तिनिका मिटावनेकी इच्छाकरि आकुलता होइ, वह मिटै तब कोई अन्य इच्छा उपजै ताकी आकुलता होइ । बहुरि क्षुधादिक होइ तब उनकी आकुलता होइ आवै ।। ऐसें याकै उपाय करतें कदाचित् असाता मिटि साता होइ तहां भी आकुलता रह्या ही करै तातें दुःख ही रहै है । बहुरि ऐसे भी रहना तो होता नाहीं आपकों उपाय करते करतें ही कोई।