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मो.मा.
प्रकाश
"सपरं बाधा सहिदं बुच्छीणं वंधकारणं विसमं 1
जं इंदिएहिं लद्धं तं सोक्खं दुक्खमेव बद्धाधा (?) ॥१॥
जो इंद्रियनिकर पाया सुख सो पराधीन है बाधासहित है विनाशीक है बन्धका कारण है, विषम है सो ऐसा सुख तैसा दुःख ही है । ऐसें इस संसारीकरि किया उपाय झूठा जानना । तौ सांचा उपाय कहा ? जब इच्छा तौ दूरि होय अर सर्व विषयनिका युगपत् ग्रहण रह्या करै तब यह दुख मिटै ! सो इच्छा तौ मोह गए मिटै और सबका युगपत् ग्रहण केवलज्ञान भए होइ । सो इनका उपाय सम्यग्दर्शनादिक है सोई सांचा उपाय जानना । ऐसें तौ मोहके निमित्त ज्ञानावरण दर्शनावरणका क्षयोपशम भी दुःखदायक है ताका वर्णन क्रिया । इहां कोऊ कहै, ज्ञानावरण दर्शनावरणका उदयतै जानमा न भया ताकूं दुःखका कारण कहौ क्षयोपशमकौं काहेकौं कहौ । ताका समाधान -
जो जानना न होना दुःखका कारन होय तौ पुद्गलकै भी दुःख ठहरै । तातें दुःखका मूलकारण तौ इच्छा है सो इच्छा चयोपशमहीतै हो है, तातै क्षयोपशमकौं दुःखका कारन कया है परमार्थ क्षयोपशम भी दुःखका कारन नाहीं । जो मोह विषयग्रहणकी इच्छा है। सोई दुःखका कारन जानना । बहुरि मोहका उदय है सो दुःखरूप ही है । कैसें सो कहिए है, प्रथम तौ दर्शनमोहके उदयतें मिथ्यादर्शन हो है ताकरि जैसें याकै श्रद्वान है,
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