SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 509
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मो.मा. प्रकाश उदय होय कर्म खिरे हैं कर्मवपना नास्ति भए पीछे ते परमाण तिस ही स्कंधविषै रहो वा | जुदे होइ जाहु किछु प्रयोजन नाहीं। इहां इतना नानना,—इस जीवकै समय-समय ||| प्रति अनंत परमाण बंधे हैं तहां एक समयविणे बंधे परमाण ते आवाधाकाल छोड़ि अपनी स्थितिके जेते समय होंहिं तिनिविषै क्रमतें उदय आवै हैं । बहुरि बहुत समयवि बंधे परमाण जे एक समयविषै उदय आवने योग्य हैं ते एकठे होय उदय प्रावै हैं। तिनि सब परमाण- | निका अनुभाग मिले जेता अनुभाग होय तितना फल तिस कालविणे निपजै है । बहुरि अनेक || | समयनिविणे बंधे परमाण बंधसमयतें लगाय उदयसमयपर्यंत कर्मरूप अस्तित्वौं धरे जीव || | सौं संबंधरूप रहैं । ऐसें कर्मनिकी बंध उदय सत्तारूप अवस्था जाननी। तहां समय-समय प्रति एक समय प्रबद्ध मात्र परमाणु बंधे हैं एक समयप्रबद्ध मात्र निर्जरै हैं । ड्योढ़गुणहा| निकरि गुणित समयप्रबद्ध मात्र सदा काल सत्ता रहै है। सो इनि सबनिका विशेष आर्गे कर्म अधिकारविषै लिखेंगे तहां जानना । बहुरि ऐसे यह कर्म हैं सो परमाणुरूप अनन्त पुदगलद्रव्यनिकरि निपजाया कार्य है तातें याका नाम द्रव्यकर्म है। बहुरि मोहके निमित्तते मिथ्यात्वक्रोधादिरूप जीवका परिणाम हो है सो अशुद्ध भावकरि निपजाया कार्य है तातेंयाका नाम भावकर्म है । सो द्रव्यकर्मके निमित्त भावकर्म होय अर भावकर्मके निमित्ततै द्रव्यकर्म का बंध होय । बहुरि द्रव्यकर्म भावकर्म, भावकर्मते द्रव्यकर्म ऐसे ही परस्पर कारणकार्य
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy