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________________ % मो.मा. प्रकाश णित आदि थातुरूप परिणमै है। बहुरि तिस भोजनके परमाणनिधि यथायोग्य कोई धातुरूप थोरे, कोई धातुरूप घने परमाणू हो हैं। बहुरि तिनिविषै कोई परमाणनिका संबंध घने काल रहै कोईनिका मेरे काल रहै । बहुरि तिनिपरमाणूनिविषै कोई तो अपने कार्य निपजाबनेको शक्तिकों बहुत धारै हैं कोई स्तोकशक्तिकों धरै हैं । सो ऐसे होनेविष कोऊ भोजनरूप पुग़लपिंडकै ज्ञान तौ नाहीं है जो मैं ऐसे परिणमौं अर और भी कोऊ परिणमावनहारा, नाहीं है, ऐसा ही निमित्तनैमित्तिक भाव बनि रह्या है ताकरि तैसें ही परिणमन पाइये है। तैसें ही कषाय होते योगद्वारिकरि ग्रह्याहुआ कर्मवर्गणारूप पुदगलपिंड सो ज्ञानावरणादि प्रकृतिरूप परिणमै है । बहुरि तिनि कर्मपरमाणू निविर्षे यथायोग्य कोई प्रकृतिरूप थोरे, कोई प्रकृतिरूप घने परमाणु होय हैं। बहुरि तिनिधिषे कोई परमाणनिका संबंध घने काल रहै कोईनिका थोरे काल रहै । बहुरि तिनिपरमाणनिविषै कोऊ तो अपने कार्य निपजावनेकी बहुत शक्ति धरै हैं कोऊ थोरी शक्ति धरै हैं सो ऐसे होनेविष कोऊ कर्मवर्गणारूप पुद्गलपिंडकै | ज्ञान तौ नाहीं है जो मैं ऐसे परिणमौं अर और भी कोई परिणमावनहारा है नाही, ऐसा ही निमित्सनैमित्तिकभाव बनि रह्या है ताकरि तैसें ही परिणमन पाइए है। सो ऐसे तो लोकविर्षे निमित्त नैमित्तिक घने ही बनि रहे हैं। जैसे मंत्रनिमित्तकरि जलादिकवि रोगादिक दूरिकरने की शक्ति हो है वा कांकरी आदिविषै सर्पादि रोकनेकी शक्ति हो है तैसे ही जीवभावके निमि ४३
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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