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प्रकाशक का निवेदन । श्री मोक्षमार्ग प्रकाशक ग्रंथ का प्रथम संस्करण वीर निर्वाण सम्बत् २४२४ के लगभग श्रीयुत बोबू ज्ञानचन्द जी जैनी लाहौर ने और दूसरा संस्करण वीर निर्वाण सम्वत् २४३८ में बम्बई के सुप्रसिद्ध जैन ग्रंथ रत्नाकर कार्यालय से श्रीयुत् पं० नाथूराम जी प्रेमी ने प्रकाशित किया था। ग्रन्थ की महती उपयोगिता के कारण सब प्रतियां शीघ्र ही समाप्त होगई। और समाज में इसकी मांग बहुत हुई। अतः इस ग्रंथ का प्रकाशन प्रारम्भ किया गया। और यह ग्रंथ अब तैयार होकर आपके सन्मुख है।
यह मेरा प्रथम प्रयास है। इसलिये इसमें त्रुटियें होना अवश्यंभावी है। विद्वज्जन कृपया सुधार ले। और मुझे भी सूचित करें ताकि यदि चौथा संस्करण हो तो उसमें वे अशुद्धियां न रहे। - ग्रंथकर्ता स्वर्गीय विद्वद्वर पं० टोडरमल जी का जीवनचरित्र इस ग्रंथ के साथ प्रकाशित करने का प्रयत्न हमने भी बहुत किया परन्तु बहुत खोज करने पर भी प्राप्त नहीं हो सका । जो महानुभाव भेजेंगे उनका हम आभार मानेंगे। और प्रथक पुस्तकाकार प्रकाशित करेंगे।
तो भी ग्रंथ पढ़ने से पाठकों को विदित होगा कि ग्रंथकर्ता ने अनेक ग्रंथों के स्वाध्याय और मनन करने के पश्चात सब ग्रंथों का सार खींच कर इस ग्रंथ में रखने का उद्योग किया है। हर एक विषय पर शंका-प्रशंकाएँ स्वयं ही उठाकर छोटी से छोटी शंका का भी विस्तार पूर्वक समाधान इस रीति से इस ग्रंथ में किया है कि वह सर्वसाधारण की समझमें भली भांति उतर जाता है। जो पाठक इस गन्थ का स्वाध्याय करेंगे उन्हें जैन धर्म का यथार्थ रहस्य ज्ञात होगा और वे गन्थकर्ता की मुक्त कंठ से प्रशंसा किये बिना नहीं रहेंगे।
परन्तु शोक है कि ग्रन्थकर्ता इस ग्रन्थ को पूर्ण नहीं कर सके। और काकाल में काल के कोप भाजन हुए। यदि यह गन्थ पूर्ण होता तो परम-पावन जैन धर्म के रहस्य को पूर्ण रीति से स्पष्ट करने में अपने ढंग का एक ही गन्थ होता।
ऐसे सर्वसाधारणोपयोगी गन्थों का प्रकाशित होना आवश्यक समझ कर हमने अब इसी कोटि के सर्वाङ्गपूर्ण गन्थ पंडित प्रवर टेकचन्द जी कृत "श्री सुदृष्टि तरंगणी" के प्रकाशित करने का विचार किया है। यदि श्री जी की कृपा हुई तो यह गन्थ भी शीघ्र ही पाठकों के सम्मुख उपस्थित होगा।
इस गन्थ के प्रकाशन में हमारे परम प्रिय भाग्नेय पं०आनन्द कुमार जी नायक ने हमारी बड़ी सहायता की है। अतएव मैं उनका आभारी हूँ। भदैनीघाट-काशी।।
निवेदकश्रुतपश्चमी वी० सं० २४५१ ।।
पम्नालाल-चौधरी।