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________________ तारणतरण ॥७॥ प्रारम्भ करदे । स्थूलपने यथाशक्ति पाले। इनके अतीचारोंका विचार व्रत प्रतिमामें होसकेगा यहां श्रावकागर अभ्यास मात्र अतीचार बचानेकी कोशिश करे तथा स्वपर तत्वको भिन्न विचारे तथा मुख्यतासे शुद्धात्मानुभवका विशेष अभ्यास करै । सम्यग्दर्शनको २५ दोष रहित शुद्ध पाले। ॐ के बारा पांच परमेष्ठीका ध्यान करे । परिणाम सदाकाल मोक्षमार्गमें उमंगरूप रक्खे । श्री रत्नकरंड श्रावकाचारमें लिखा है सम्यग्दर्शनशुद्धः संसारशरीरभोगनिर्विण्णः पंचगुरुचरणशरणो, दर्शनिकस्तत्त्वपथगृह्यः ॥ १३७॥ मावार्थ-जो दर्शन प्रतिमाका धारी है वह शुद्ध सम्यग्दर्शनको पाले, संसार शरीर व भोगोंस वैरागी हो, पंच परमेष्ठीके चरणोंका भक्त रहे व मोक्षमार्ग पर चलने लगे अर्थात पांच अणुव्रतोंका स्थूल पने अभ्यास करे । अहिंसा अणुव्रतमें-संकल्पी हिंसा त्यागे, आरंभीके त्यागका मात्र अभ्यास करे, वृथा न ४ करे। अमितगति श्रावकाचारमें जैसा कहा है स्थावरचाती जीवस्त्रससंरक्षी विशुद्धपरिणामः । योऽक्षविषयानिवृत्तः सः संयतासंयतो ज्ञेयः ॥५-६ ॥ हिंसाढेधा प्रोक्तारंभानारंभजत्वतोदक्षः। गृहवासतो निवृत्तो द्वेषापि त्रायते तां च ॥६-६ ॥ गृहवाससेवनरतो मंदकषायः प्रवृचिरम्भाः। भारम्भमां स हि शक्रोति च रक्षितुं नियतम् ॥ ७-६॥ मावार्थ-जो जीव स्थावरोंकी हिंसाको त्यागने असमर्थ है तथा त्रस जीवोंकी भलेप्रकार रक्षा रहित है, इंद्रियोंके विषयोंसे विरक्त है, विशुद्ध परिणामधारी है वह देश व्रतका धारी प्रावक होता है। हिंसा दो प्रकारकी है-आरम्भी दूसरी अनारम्भी या संकल्पी। जो गृहवासके त्यागी मुनि हैं वे दोनों प्रकारकी हिंसाके त्यागी होते हैं। जो गृहवासमें हैं मंद कषायधारी हैं व आरम्भमें प्रवृत्ति में रखते हैं वे नियम रूपसे भारम्भ जनित हिंसाके छोडनेको असमर्थ होते हैं। आरम्भी हिंसा तीन प्रकारसे होसक्ती है। १-उद्यमी-असिकर्म (शब्द प्रयोग द्वारा), मसिकर्म (लेखन कर्म), कृषि कर्म, वाणिज्य कर्म, शिल्प कर्म, विद्या कर्म (कला नृत्य गानादि) इन छ: प्रकार के कार्योंके द्वारा न्यायपूर्वक गृह* स्थीको आजीविका करनी पड़ती है तब इन उद्यमों में विचार पूर्वक करते हुए भी जो बस स्थावरकी HROOM हिंसा होती है वह उद्यमी रिसा है।
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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