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________________ वारणतरण __ अन्वयार्थ (ॐ वकारं च वेदंते ) जो श्रावक ॐकारका अनुभव करते हैं ( ह्रींकारं श्रुत उच्यते ) व ही बीजाक्षरका उच्चारण करते हैं (अचक्षुदर्शन जयंते) अचक्षुदर्शनद्वारा आत्माको देखते हैं (सदा बुधैः श्रावमा ४ मध्यपात्रं ) उनको ही आचार्योंने सदा मध्यम पात्र कहा है। विशेषार्थ-मध्यम पात्र श्रावक भी ॐका ध्यान करके पांच परमेष्ठीके स्वरूपका चितवन करके ५ सके द्वारा अपने शुखात्मापर उपयोग लेजाते हैं तथा वे ह्रींका भी अंतरंगमें जप करते हैं व उसका १ ध्यान करते हैं व इसके द्वारा चौवीस तीर्थंकरोंका स्वरूप विचारते हैं, फिर उनके द्वारा अपने शुद्धा. त्मापर उपयोग लेजाते हैं। तथा मन द्वारा अचक्षु दर्शनका प्रयोग करके निर्विकल्प आत्माका दर्शन करते हैं। मनका विषय आत्मा है, मन द्वारा अचक्षु दर्शन अमूर्तीक आत्मापर उपयोग लेजासत्ता है। इस तरह जो आत्माके प्रेमी, आत्मध्यानी व शुद्धात्माके अनुभवशाल होते हैं वे ही मध्यम पात्र कहे गए हैं। श्लोक-प्रतिमा एकादशं येन, व्रतं पंच अणुव्रतं । साद्धं शुद्धतत्वार्थ, धर्मध्यानं च जोइतं ॥ २६३ ॥ ____अन्वयार्थ-(येन एकादशं प्रतिमा) जो ग्यारह प्रतिमाओंको पालते हैं (पंच अणुव्रतं व्रत) पांच अणुः बत व उनके सहकारी तीन गुण व्रत व चार शिक्षावतोंको पालते हैं (शुद्ध तत्वार्थ साई) शुद्ध तत्वके अनुभव करनेवाले हैं (धर्मध्यानं च जोइतं ) और धर्मध्यानका अभ्यास करते हैं, वे मध्यम पात्र हैं। विशेषार्थ-दर्शन, व्रत, सामायिक, प्रोषधोपवास, सचित्त त्याग, रात्रि भुक्ति त्याग, ब्रह्मचर्य, आरम्भ त्याग, परिग्रह त्याग, अनुमति त्याग, उद्दिष्ट त्याग ये ग्यारह प्रतिमाएँ हैं। इनका स्वरूप इस ग्रन्थमें आगे कहा है। मध्यम श्रावक इस श्रेणियोंके द्वारा चारित्रकी उन्नति करते हैं। तथा बारह व्रतोंको उत्तरोत्तर बढाते जाते हैं। अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य व परिग्रह प्रमाण इन पांच अणुव्रतोंको पालते हैं। दिग्बत, देशव्रत, अनर्थदंड त्याग व्रत इन तीन गुण व्रतोंको पालते हैं। सामायिक, प्रोषधोपवास, भोगोपभोग परिमाण तथा अतिथिसंविभाग इन चार शिक्षावतोंको पालते हैं। बाहरी चारित्र इसतरह पालते हुए शुद्ध आत्मकि तत्वका अनुभव किया करते हैं। उनकी मुख्य दृष्टि अपने आत्मीक विचारपर रहती है। इसी हेतु ये सब श्रावक धर्मध्यानका अभ्यास भले
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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