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मारणतरण
श्रावकाचार
रणतरण श्रावकाचार।
मंगलाचरण । ऋषभदेवसे वीर लों, चौवीसों जिनराय । मन वच काय नमायके, वंदहु वर वृषदाय ॥ स्याबाद वाणी नमो, सत्य अर्थ भंडार । परम तत्व आरूढ़ कर, करत भवोदधि पार ॥ ग्रंथ रहित आतम रमी, वैरागी व्रत पूर्ण । परम साधु गुरु वदऊँ, होत विघ्न सब चूर्ण ॥ तारण स्वामी रचित जो, ग्रंथ श्रावकाचार ।
हिन्दी भाषामें लिखू, उल्था जन उपकार ॥ अब श्री तारणतरण रचित श्रावकाचारका भाव हिन्दी भाषामें लिखा जाता है
मंगलाचरण। श्लोक-देव देवं नमस्कृतं, लोकालोकप्रकाशकं ।
त्रिलोकं अर्थ ज्योतिः, ऊंवंकारं च वंदते ॥१॥ अन्वयार्थ-( देव देवं ) चार प्रकार देवोंके देव अर्थात् इन्द्रादि द्वारा (नमस्कृतं ) नमस्कार करने ॐ योग्य ( लोकालोकप्रकाशकं ) लोक और अलोकके प्रकाशक ( त्रिलोकं ) तीन लोकके ( अर्थ ) पदार्थों के लिये ४(ज्योतिः) ज्योति रूप ऐसे (ऊवंकारं ) ॐ को (च वंदते ) ही वन्दना करता है।
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