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सारणतारण लोकमें धन हानि, यश हानि, शरीर हानि, धर्म हानि उठाता है, परलोकमें तीब पाप बाधकर नर्क ॥११॥ आदिके दुख उठाता है सो भी एकवार नहीं वारवार दुखोंको भुगतनेवाली पर्यायों में जन्मना पड़ता है, ऐसे व्यसन सात हैं।
दोहा-जूआ खेलन मांस मद, वेश्या व्यसन शिकार | चोरी पररमनी रमन, सातों न्यसन निवार ॥
भावार्थ-जूआ खेलना, मांस खाना, मदिरा पीना, वेश्यासेवन, शिकार खेलना, चोरी करना, परस्त्री सेवन करना, ये सात व्यसन महान अन्याय हैं। जो धर्मकी प्राप्ति करना चाहें उनको यहां यह शिक्षा दी है कि वे स्त्री, भोजन, देश व राजाकी राग द्वेष बढानेवाली कथाओंको कहें व सुने नहीं तथा वे इन सात व्यसनोंकी रुचि न पैदा करें। जो इनमें से एक भी व्यसनमें फंस जाता है वह अपना जीवन बिगाड़ देता है। आत्माकी शुद्धोपयोग परिणतिको धर्म कहते हैं। उस धर्मका लाभ व्यसनासक्तको अत्यन्त दुर्लभ है। अतएव हितैषीको इन सातों बुराइयोंसे अपनेको पचाना चाहिये।
लोक-जुआ अशुद्ध भावस्य, जोहतं अनृतं श्रुतं ।
परिणए आतिसंयुक्तं, जूआ नस्यभाजनं ॥ १०८॥ अन्वयार्थ (जुआ) जुआ खेलना (अशुद्ध भावस्य ) अशुद्ध भावोंको (जोडतं ) उत्पन्न करनेवाला ॐ है ( अनृतं ) मिथ्या ( श्रुतं ) वाणीरूप है ( आतिसंयुक्तं ) आर्तध्यान सहित ( परिणए ) परिणामोंको कर देता है। (जूआ) यह जूमा ( नरयभाजन ) नरकका लेजानेवाला है।
विशेषार्थ-यहां पहले गृत व्यसनका कथन किया है कि सात व्यसनोंका सहोर जुआ खेलना है। जुआरीके भावों में भारी अशुद्धता आजाती है। वह तीन लोभ व मायाके वशीभूत होजाता है। मिथ्या व कठोर वचनोंका प्रयोग भी जूएमें होजाता है। परिणामों में धन पानेकी तीन लालसा हो जाती है। यदि धन हाथसे निकल जाता है तो उसके चले जाने की घोर चिंता दिलमें आजाती है। यदि कहीं जीत होजाती है तो अभिमान बढ़ जाता है तथा और अधिक जूए खेलनेके भाव होजाते हैं। जुआरीके भाव तीन तृष्णामें फंस जाते हैं। यदि आयुबंधका अवसर आजावे तो उसको नरक आयु बांधकर नरक जाना पड़ता है। जूएकी धुनमें जुभारी धर्म कर्म न्याय अन्याय सर्व भूल जाता